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आगम (४५)
अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
........... मूलं [१४२] / गाथा ||१११-११२|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [१४२]
गाथा: ||-II
गगन्भवतियउरपरिसप्पथलयरपंचिंदियजाव गो! जहन्नेणवि अंतो० उक्कोसेणवि अंतो०, पजत्तयगब्भवतियउरपरिसप्पथलयरपंचिंदियजाव गो०! जह• अंतो. उक्को० पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा, भुअपरिसप्पथलयरपंचिंदियजाव गो०! जहपणेण अंतो• उक्कोसेणं पुवकोडी, समुच्छिमभुयपरिसप्पथल० गो०! जह० अं० उक्को० बायालीसं वाससहस्साई, अपजत्तयसंमुच्छिमभुअपरिसप्पथलयरपंचिंदिय जाव गो०! जह० अंतो० उक्को. अंतों, पज्जत्तगसंमुच्छिमभुअपरिसप्पथलयरपंचिंदिय जाव गो० ! जह० अंतो. उक्को० बायालीसं वाससहस्साई अंतो०, गब्भवक्कंतियभुअपरिसप्पथलयरपंचिंदिय जाव गो०! जह० अंतो० उक्को० पुवकोडी, अपजत्तयगब्भवतियभुअपरिसप्पथलयरपंचिंदियजाव गो०! जहन्नेणवि अंतो. उकोसेणवि अंतो०, पजत्तयगब्भवतियभुअपरिसप्पथलयरपंचिंदिय जाव गो०! जह• अंतो० उक्को पुव्बकोडी अंतोमुहत्तूणा, खहयरपंचिंदिय जाव गो! जह• अंतो० उक्को.
दीप अनुक्रम [२८९-२९२]
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अस्य सूत्रस्य क्रम: १४०' वर्तते, परन्तु मुद्रण अशुद्धित्वात् '१४२' इति क्रम मुद्रितं
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