________________
आगम
(४५)
अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
.............. मूलं [१३१] / गाथा ||८५-९०|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
-
[१३१]
अनुयो. मलधारीया
वृत्तिः उपक्रमाधिक
गाथा:
॥१४५॥
||-II
णिरक्खिए य, एवं सव्वनक्खत्तेसु नामा भाणिअव्वा। एत्थं संगहणिगाहाओ-कित्तिअरोहिणिमिगसिरअदा य पुणव्वसू अ पुस्से अ। तत्तो अ अस्सिलेसा महा उ दो फग्गुणीओ अ॥१॥ हत्थो चित्ता साती विसाहा तह य होइ अणुराहा । जेट्ठा मूला पुव्वासाढा तह उत्तरा चेव ॥२॥ अभिई सवण धणिट्रा सतभिसदा दो अ होति भद्दवया । रेवई अस्सिणि भरणी एसा नक्खत्तपरिवाडी ॥३॥ से तं नक्खत्तनामे । से किं तं देवयाणामे ?, २ अग्गिदेवयाहि जाए अग्गिए अग्गिदिपणे अग्गिसम्मे अग्गिधम्मे अग्गिदेवे अग्गिदासे अग्गिसेणे अग्गिरक्खिए एवं सव्वनक्खत्तदेवयानामा भाणिअव्वा । एत्थंपि संगहणिगाहाओ-अग्गिपयावइ सोमे रुदो अदिती विहस्सई सप्पे । पिति भग अज्जम सविआ तट्रा वाऊ अइंदग्गी ॥१॥ मित्तो इंदो निरई आऊ विस्सो अ बंभ विहआ। वसु वरुण अयविवद्धि पूसे आसे जमे चेव ॥२॥से तं देवयाणामे । से किं तं कुलनामे ?, २ उम्गे भोगे रायपणे खत्तिप
दीप अनुक्रम [२३८-२४७]
CSCARRACK
॥१४५॥
~ 293~