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आगम
(४५)
अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
.............. मूलं [१२३] / गाथा ||१७...|| .. मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [१२३]
दीप अनुक्रम [१५०]
अपरिसप्पथलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिए अ, अविसेसिए चउप्पयथलयरपं० विसेसिए संमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिए अ गब्भवक्कंतिअचउप्पयथलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिए अ, अविसेसिए संमुच्छिमचउप्पयथलयर० विसेसिए पज. तयसंमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिए अ अपजत्तयसंमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिए अ, अविसेसिए गन्भवतिअचउप्पयथलयरपंचिंदिअ० विसेसिए पजत्तयगब्भवकंतिअचउप्पयथलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिए अ अपज्जत्तयगब्भवतिअचउप्पयथलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिए अ, अविसेसिए परिसप्पथलयर० विसेसिए उरपरिसप्पथलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिए अ भुअपरिसप्पथलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिए अ, एतेऽवि संमुच्छिमा पजत्तगा अपजत्तगा य गम्भवकंतिआवि पजत्तगा अपजत्तगा य भाणिअव्वा । अविसेसिए खहयरपंचिदिअ० विसेसिए संमुच्छिमखहयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिए अ गब्भवतिअखहयरपंचिंदिअ
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