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________________ आगम “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य|+वृत्ति:) चूलिका [१], मूलं [१...], / गाथा ||१-८|| नियुक्ति: [३६७...], भाष्यं [६२...] (४२) दशवैका. हारि-वृत्तिः रतिवाक्यचूला. 5453454643 प्रत सूत्रांक ||१८|| ॥२७४॥ जया य चयई धम्म, अणज्जो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए बाले, आयई नावबुज्झइ ॥१॥ जया ओहाविओ होइ, इंदो वा पडिओ छमं । सव्वधम्मपरिब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पइ ॥२॥ जया अ वंदिमो होइ, पच्छा होइ अवंदिमो । देवया व चुआ ठाणा, स पच्छा परितप्पइ ॥३॥ जया अपूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो। राया व रजपब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पइ ॥४॥ जया अ माणिमो होइ, पच्छा होइ अमाणिमो । सिद्धि व्व कब्बडे छुढो, स पच्छा परितप्पइ ॥ ५॥ जया अ थेरओ होइ, समइकंतजुव्वणो । मच्छु व्व गलं गिलित्ता, स पच्छा परितप्पड़ ॥६॥ जया अ कुकुडुंबस्स, कुतत्तीहिं विहम्मइ । हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पइ ॥७॥ पुत्तदारपरीकिण्णो, मोहसंताणसंतओ। पंकोसन्नो जहा नागो, स पच्छा परितप्पड़ ॥८॥ यदा चैवमप्यष्टादशसु ग्यावर्तनकारणेषु सत्खपि 'जहाति' त्यजति 'धर्म' चारित्रलक्षणम् 'अनार्य' इत्य-12 दीप अनुक्रम [५०७ -५१४] WI॥२४॥ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[४२], मूल सूत्र-[३] “दशवैकालिक” मूलं एवं हरिभद्रसूरि-विरचिता वृत्ति: ~5514
SR No.004144
Book TitleAagam 42 DASHVAIKAALIK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages577
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size134 MB
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