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आगम (३५)
“बृहत्कल्प” - छेदसूत्र-२ (मूलं) ---..-...--- उद्देश: [१] -----
-------- मूलं [१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३५], छेदसूत्र - [२] "बृहत्कल्प" मूलं
प्रता
सुत्राक
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दीप अनुक्रम
पीठिकामाप्यगाथाः '८०८ नो कप्पा निग्गन्धाण वा निगान्धीण या आम नालपलम्बे अभिने पहिगाहेनए '१०.२१ कप्पट निम्गन्धाण वा श्रावृहत्कल्पसूत्रम् निगाधीण पा प्रामे मालपरमेनिने पहिम्मानिए.१.३६॥शकापड निम्मम्याण पके जालपालम्मे भिजे बा अभिन्ने वा परिमाहेनए।रानी कपा निमान्धीणं पके तालपारम्ब अभिषे पहिग्गाहेगए।४ाकपा निग्गन्धीणं पके तालपलम्बे मिन्ने परिमाहेनए, सेऽपि च विहिमिन्ने, नो पेरणं अपिहिभिन्ने (परम्पपगरण '१०८९५ से गामंसि वा नगरंसिवासेसिवा कम्बईसिया पदणंसि वा मडम्बसि वा आगरंसिवा दोणमुहंसि वा निगमंसि बारापहाणिसि वा आसमंसि पा संनिसंसिवा संचा। हसि वा पोससि वा असिसि या परमेयनसियासपरिस्पेसि अबाहिरियसि कप्पड निम्मान्धाण हेमन्तमिम्हाम एग मास बन्धए।हासे गामंसिवा जाबरावहाणिसि वा सपरिक्खे. पसि सबाहिरियसि कपद निगन्धाणं हेमन्नगिम्हारा दो मासे पत्थए, अन्ता एर्ग मासं बाहि एर्ग मासं. अन्तो बसमाणाणं अन्लो मिकरवायरिया बाहि वसमाणाणं बाहि मिकतायरिया । पासे गार्मसिया जार रापहाणिसि वा सपरिक्सेसि अबाहिरियसि कप्पद निग्गन्धीण हेमन्तगिम्हासु दो मासे कथए।रासे गामंसि वा जाप रावहाणिसिमा सपरिबरपति सबाहिरियसि कापड़ निगचीणं हेमंतगिम्हास चनारि मासे पत्थए, अंतो दो मासे पाहि दो मासे, अंनो बसमागीणं अंनो मिस्सायरिया बाहि बसमागीण वाहि भिक्खापरिया, *२१-३० ।।से गामंसि बाजार पहामिसि वा एगवगडाए एगद्वाराए एगनिकत्वमणपसाए नो कचा निगचाण व निमोधीण ब एगपो कथए।१०। से गामंसिया जाररावहागिसि वा अभिनिवगडाए अमिनिद्वाराए अभि(ग)निफ्लमणपसाए का निर्माधाण व निर्माधीण य एगपत्रो बन्धए २३.७११११ नो कप्पद निम्गंधीण आपण ९६१चहत्कन्या मुत्री
मुनि दीपरतसागर
अत्र उद्देशक: १ आरब्धः
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