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________________ आगम (१६) "सूर्यप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [२०], -------------------- प्राभृतप्राभृत [-], --------------------- मूलं [१०५R-१०६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१६], उपांग सूत्र - [9] "सूर्यप्रज्ञप्ति” मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: ---- प्रत सूत्रांक सूर्यप्रजप्तिवृत्तिः (मल०) ॥२९॥ हाः [१०५R - -१०६] तारारूपाणां देवानां कामभोगाः, तेभ्योऽप्यनन्तगुणविशिष्ट तराः कामभोगाः चन्द्रसूर्याणां, एतादृशान् चन्द्रसूर्या ज्योति- २० प्राभूते पन्द्रा ज्योतिपराजाः कामभोगान् प्रत्यनुभवन्तो बिहरन्ति । सम्मति पूर्वमष्टाशीतिसमखाग्रहा उक्तास्तान् नाममाहमुप- भष्ट्राशीतिदिदर्शयिषुराहHI तस्थ खलु इमे अट्ठासीती महग्गहा पं०, २०-इंगालए चियालए लोहितके सणिच्छरे आहणिए पाहणिए। सू १०७ कणो कणए कणकणए कणविताणए १०कणगसंताणे सोमे सहिते अस्सासणो कजोवए कवरए अपकरए दुईभए संखे संखणाभे २० संखवण्णाभे कंसे कंसणाभे कंसवण्णाभे णीले णीलोभासे रुप्पे रुप्पोभासे भासे । |भासरासी ३० तिले तिलपुष्पवणे दगे दगवणे काये बंधे इंदग्गी धूमकेतू हरी पिंगलए ४० बुधे सुके यह-1।। |स्सती राह अगस्थी माणवए कामफासे धुरे पमुहे वियडे५० विसंधिकप्पेल्लए पहले जडियालए अरुणे अग्गिल्लए। काले महाकाले सोस्थिए सोवस्थिए बदमाणगे ६० पलंबे णिचालोए णिचजोते सयंपभे ओभासे सेयंकरे खेमकरे। आभंकरे पभंकरे अरए ७० विरए भसोगे वीतसोगे य विमले विवसे विवत्थे विसाल साले सुपते अणियट्टी एगजडी८०नुजडी कर करिए राषऽग्गले पुप्फकेतू भाव केतू, संगहणी-इंगालए विद्यालए लोहितके सणिकछरे । चेव । आहुणिए पाहुणिए कणकसणामावि पंचेच ॥१॥ सोमे सहिते अस्सासणे य कजोबए य कबरए। २९४॥ अयकरए दुंदुभए संलसणामावि तिण्णेव ॥ २॥ तिन्नेव कंसणामा णीले रुप्पी य हुंति चत्तारि। भास तिल पुष्करपणे दगवणे काल बंधे य ॥ ३ ॥ इंदग्गी धूमकेतू हरि पिंगलए बुधे य सुके य । वहसति राहु अगस्थी - दीप अनुक्रम [१९६ OCO-NCC-- -१९७] ~593~
SR No.004116
Book TitleAagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages600
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_suryapragnapti
File Size128 MB
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