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________________ आगम (१६) “सूर्यप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [१०], -------------------- प्राभृतप्राभृत [२१], -------------------- मूलं [१९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१६], उपांग सूत्र - [9] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूर्यप्रज्ञतिवृत्तिः (मल०) है सूत्रांक ॥१७॥ दीप तदेवमुक्तं दशमस्य प्राभृतस्य विंशतितम प्राभृतप्राभृतं, साम्प्रतं एकविंशतितममारभ्यते, तस्य चायमर्थाधिकारो १० प्राभृते यथा 'नक्षत्रचक्रस्य द्वाराणि वक्तव्यानि,' ततस्तद्विषयं प्रश्नसूत्रमाह २१प्राभूत PI प्राभूते ता कहते जोतिसस्स दारा आहितातिवदेजा ?, तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पण्णताओ, तत्थेगे एचमाहंसु ता कत्तियादी णं सत्त नक्षत्ता पुषादारिया पण्णत्ता एगे एवमाहंसु१, पगे पुण एवमाहंसुणि सू ५९ ता महादीया सत्त णक्खत्ता पुषदारिया पपणत्सा एगे एवमाहंसु २, एगे पुण एवमासु ता धणिवादीया| सत्त णक्वत्ता पुषदारिआ पण्णत्ता एगे एवमाहंसु ३, एगे पुण एवमाहंसु अस्सिणीयादीया णं सत्स णक्खत्ता पुषादारिया पं० एगे एचमाहंसु ४, एगे पुण एवमासु ता भरणीयादीआ णं सत्स णक्खता पुषदारिआ पण्णता । तत्थ जे ते एवमाहंसु ता कत्तियादी णं सत्त णक्खत्ता पुवदारिया पं० ते एवमाहंसु-तं०-18 कत्तिया रोहिणी संठाणा अदा पुणवस पुस्सो असिलेसा, सत्त णक्खता दाहिणदारिया पं०तं०-महा पुषफग्गुणी उत्तराफग्गुणी हस्थो चित्ता साई विसाहा, अणुराधादीया सस णक्खत्ता पच्छिमदारिया पं० सं०-| अणुराधा जेट्टा मूलो पुवासाढा उत्तरासाढा अभियी सवणो, धणिहादीया सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पं०२०-धणिवा सतभिसया पुच्चापोट्ठवता उत्सरापोट्टवता रेवती अस्सिणी भरणी ॥ तत्थ जे ते एवमाहंसुता शा॥१७॥ महादीया सत्त णक्खत्ता पुखदारिया पं०ते एवमासु तं०-महा पुत्वाफग्गुणी हत्थो चित्ता साती बिसाहा, अणुराधादीया सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पं० सं०-अणुराधा जेट्ठा मूले पुवासाढा उत्तरासादा अभियी अनुक्रम [८६] 4565654 अथ दशमे प्राभृते प्राभृतप्राभृतं- २० परिसमाप्तं अथ दशमे प्राभृते प्राभृतप्राभृतं- २१ आरभ्यते ~351~
SR No.004116
Book TitleAagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages600
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_suryapragnapti
File Size128 MB
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