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________________ आगम (१६) सूर्यप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [१०], --------------------- प्राभृतप्राभृत [२], -------------------- मूलं [३४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१६], उपांग सूत्र - [9] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३३] २० दीप अनुक्रम [४३] सूर्यप्रज्ञ-1 अवसेसा नक्खत्ता पनरस ए टुति तीसइमुहुत्ता । चंदमि एस जोगो नक्खत्ताणं समक्खाओ ॥२॥" तदेवमुक्तो नक्ष-12. प्राभृते सिवृत्तिः पत्राणां चन्द्रेण सह योगः, सम्प्रति सूर्येण सह तमभिधित्सुराह |२प्राभृत(मल II ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अत्थि णवत्ते जेणं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेण सद्धि प्राभृते ॥९ ॥ जोय जोएंति, अस्थि णक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एकवीसं च मुहत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति, अस्थि सूर्योण यो णक्वत्ता जेणं तेरस अहोरत्ते वारस य मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति, अत्धि णवत्ता जे णं वीसं अहो-ट्रासूब गासू ३४ रत्से तिपिण य मुहुत्ते सूरेण.सद्धिं जोयं जोएंति, ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कतरे णक्खत्तेज चत्तारि अहोरसे छच मुहसे सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति, कतरे णक्खत्ते जे णं छ अहोरते एकवीसमुहुत्ते सूरेणं सद्धिं जोयं जोएंति, कतरे णक्खत्ता जेणं तेरस अहोरत्ते यारस मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति कतरे णक्खत्ता जे णे वीसं अहोरत्ते सरेण सद्धिं जोयं जोएंति, ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं तत्थ जे से णक्खत्ते जे णं चत्तारि अहोरसे छच मुहुत्ते सूरेण सहि जोयं जोएंति से णं अभीयी, तस्य जे ते णक्खता जे णंछ अहोरत्ते एकवीसं च मुहत्ते सूरिएण सद्धिं जोयं जोएंति ते णं छ, तं०-सतभिसपा भरणी * अदा अस्सेसा साती जेट्ठा, तत्थ जे ते तेरस अहोरत्ते दुवालस य मुहले सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति ते णं पणरस, तंजहा-सवणो धणिट्ठा पुवाभवता रेवती अस्सिणी कशिया मग्गसिरं पूसो महा पुषाफग्गुणी हत्या चित्ता अणुराधा मूलो पुवाआसाढा, तत्थ जे ते णक्खत्ता जेणं वीसं अहोरत्ते तिपिण य मुहासे सूरेण १०२ ~ 209~
SR No.004116
Book TitleAagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages600
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_suryapragnapti
File Size128 MB
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