________________
आगम
सूर्यप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
(१६)
प्राभत [६], ..... ........-- प्राभतप्राभूत [-1, ....... ........- मूलं [२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१६], उपांग सूत्र - [9] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
तिवृत्तिः।
प्रत
(मल०)
सूत्रांक [२७]
दीप अनुक्रम [३७]
SEARSHAHR
यस्स ओया अन्ना उप्पजइ अशा अवेइ, एगे एवमासु १३, एगे पुण एवमाहंसु ता अशुपुवसयमेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पजइ अन्ना अवेइ, एगे एवमाहंसु १४, एगे पुण एवमाहंसु ता अणुपुषसहस्समेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्प- स्थितिजइ अन्ना अवेइ, एगे एवमासु १५, एगे पुण एवमासु ता अणुपुषसयसहस्समेव सूरियस्स ओया अन्ना उपज्जइFI
प्राभृते अन्ना अबेइ, एगे एवमाईसु १६, एगे पुण एवमासु ता अणुपलिओवममेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पज्जइ, अशा अवेइ,
सू २७ एगे एवमासु १७, एगे पुण पवमासु ता अणुपलिओवमसयमेव सूरियस्स ओया अन्ना उपजाइ, अन्ना अवेइ, एगे एवमाइंसु १८, एगे पुण एवमाहंसु ता अणुपलिओवमसहस्समेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पजइ अन्ना अवेइ, एगे एवमाहंसु १९, एगे पुण एवमाहंसु ता अणुपलिओवमसयसहस्समेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पज्जइ, अन्ना अवेइ, एगे एव-15 मासु २०, एगे पुण एवमाहंसु ता अणुसागरोषममेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पजइ, अन्ना अवेइ, एगे एवमासु २१, एगे पुण एवमाहंसु ता अणुसागरोवमसयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवेह, एगे एवमासु २२, एगे| [पुण एवमाहंसु ता अणुसागरोवमसहस्समेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जा, अन्ना अवेइ, एगे पचमाहंसु २३, एगे पुष्प |एवमासु ता अणुसागरोवमसयसहस्समेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पजइ, अण्णा अबेइ, एगे एवमासु २४, एगे पुण एवमाहंसु ता अणुउस्सप्पिणिओसप्पिणिमेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पजइ, अन्ना अवेइ, एगे एवमाइंसु २५' एताच
॥८१॥ पतिपत्तयः सवों अपि मिथ्यात्वरूपा यतोऽत एतासामपोहेन भगवान् स्वमतमुपदर्शयति-वयं पुनरेवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण वदामः, तमेव प्रकारमाह-'ता तीस मित्यादि, ता इति पूर्ववत् , जम्बूद्वीपे प्रतिवर्षे परिपूर्णतया त्रिशतं त्रिंशतं मुहूचान ५
~167~