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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति: [सर्वजीव], ---------------- प्रति प्रति [९], ----------------- मूलं [२७१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२७१] असोयगुणाः पृथिवीकायिका विशेषाधिकाः अकायिका विशेषाधिकाः वायुकायिका विशेषाधिकाः अनिन्दिा अबन्दगुणाः वनस्पतिकायिका अनन्तगुणाः ।। अहवा वसविहा सव्वजीचा पण्णता, तंजहा-पढमसमयणेरड्या अपरमसमयनेरहया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढयसमपमणूसा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिमा । पहमसमयबेरहया गं भंते। पत्मसमयणेरहपत्ति कालओ केवचिरं होति?, गोयमा! एकं समर्ष, अपरमसमयनेरइए णं भंते १०१ जहन्नेणं दस वाससहस्साई समऊणाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोचमाई समऊणाई, पढमसमयतिरिक्खजोणिया गं भंते!० २१, गोयमा! एकं समर्थ, अपदमसमयतिरिक्व.जह खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उको० वणस्सहकालो, पढमसमयमणूसे पं भंते १०२, एक समयं, अपढमस०मणूसे णं भंते!०१, जह खुडागं भवग्गहर्ण समकणं उकोतिपिण पतिओवमाई पुब्बकोडिपुत्समभहियाई, देवे जहा णेरइए, पढमसमपसिद्धे णं भंते !०२१, एक समयं, अपतमसमयसिद्धे ण भंते ०२१, सादीए अपज्जवसिए। पढमसमपणेर भंते! अंतर कालओ.?, ज. दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमम्भहियाई उको० वण, अपढमसमपणेर० अंतरं कालओ केव०१, जह० अंतो० उ० वण०, पढमसमयतिरिक्खजोणियस्त अंत्वरं केवचिरं होह ?, गो दीप अनुक्रम [३९७]] VAROSAGARMACOCARK ~932~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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