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आगम
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“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति: [सर्वजीव], ------------------- प्रति प्रति० [९], ------------------ मूलं [२७१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२७१]
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दीप अनुक्रम [३९७]
| तिर्यग्योनिका अनन्तगुणाः । उपसंहारमाह-'सेत्तं नवविहा सधजीवा पण्णत्ता' । उक्ता नवविधाः सर्वजीवाः, सम्प्रति दशविधानाह
तत्थ णं जे ते एवमाहंसु दसविधा सम्बजीवा पपणत्ता ते णं एवमाहंस, तंजहा-पदविकाहया आउकाइया तेजकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया बिंदिया तिदिया चरिं० पं. अणिंदिया ॥ पुढधिकाइए णं भंते ! पुढविकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति?, गोयमा! जह• अंतो.
को असंखेज कालं असंखेजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ खेत्तओ असंखेना लोया, एवं आउतेउवाउकाइए, वणस्सतिकाइए णं भंते !०२१, गोयमा! जह• अंतो० उक्को वणस्सलिकालो, दिए भंते!?, जह. अंतो उको संखेजं कालं, एवं तेईदिएवि चउरिदिएवि, पंचिंदिए णं भंते !?, गोयमा! जह० अंतो० उक्को सागरोवमसहस्सं सातिरेग,
अणिदिए णं भंते !०१, सादीए अपज्जवसिए ॥ पुढविकाइयस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवचिरं होति?, गोयमा जह• अंतोषको वणस्सतिकालो, एवं आउकाइयस्स तेउ० वाउ०, वणस्सइकाइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ०१, जा चेव पुढविकाइयस्स संचिट्ठणा, वियतियचउरिंदियपंचेंदियाणं एतेर्सि चजण्हंपि अंतरं जह• अंतो० उक्को० वणस्सइकालो, अणिविपस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति?, गोयमा! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ॥ ए.
अत्र सर्वजीव-प्रतिपत्ति: नवविधा] परिसमाप्ता अथ सर्वजीव-प्रतिपत्ति: ९-[दशविधा] आरब्धा:
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