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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति: [५], ---------------------- उद्देशक: [-], --------------------- मूलं [२३९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
15/५ प्रतिपत्ती
निगोदा
प्रत
धिकारः
श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः ॥ ४२४॥
सूत्रांक [२३९]
| उद्देशा२
सू०२३९
दीप अनुक्रम [३६४]
अप्पजत्तयावि, पएसट्टयाए सब्बे अर्णता, एवं णिओदजीवा नवविहाबि पएसट्टयाए सब्बे अणंता ।। एएसिणं भंते ! णिओयाणं सुहमाणं वायराणं पलत्तयाणं अपजत्तगाणं दयट्ठयाए पएसट्टयाए दब्बट्ठपएसट्टयाए कयरेशहितो अप्पा वा बहुया चा०?, गोयमा! सब्वत्थोचा बादरणिओयपज्जत्तगा दबट्टयाए बादरनिगोदा अपज्जत्तगा दग्वट्टयाए असंखेजगुणा सुहमणिओदा अपजत्तगा व्यट्टयाए असंखेजगुणा सुहमणिओदा पज्जत्रागा दम्बट्टयाए संखिजगुणा, एवं प. देसट्टयाएपि ॥ ब्वट्ठपदेसट्टयाए सब्वत्थोवा बादरणिओया य पजत्ता दुव्वट्ठपाए जाव सुहमणिओदा पजत्ता य दवट्ठयाए संखेजगुणा, सुहमणिओएहितो पज्जत्तएहितो दवट्टयाए बायरणिगोदा पजत्ता पएसट्टया अणंतगुणा बायरणिओदा अपजसा पएसट्टयाए असंख० जाव मुहमणिओया पज्जत्ता पएसट्टयाए संखेजगुणा । एवं णिओयजीवावि, णवरि संकमए जाव सुहुमणिओयजीवहिंतो पजत्तएहिंतो दबट्टयाए बायरणिओयजीवा पज० पदेसट्टयाए असंखेजगुणा, सेसं तहेव जाव सुहमणिओयजीवा पजत्ता पएसट्टयाए संखेजगुणा ॥ एतेसिणं भंते! णिगोदाणं सुहमाणं बायराणं पजत्ताणं अपज्जत्ताणं णिओयजीवाणं सुहमाणं बायराणं पज्जत्तगाणं अपजत्तगाणंदब्वट्ठयाए पएसट्टयाए कयरेशहितो?०, सव्वस्थोवा पायरणिओदा पजत्ता दवट्ठयाए पापरणिओदा अपजसा बट्ठयाए असङ्खजगुणा सुहमणिगोदा अप० दबट्ठयाए
||४२४॥
अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते- एता प्रतिपतौ न कोऽपि उद्देशक: वर्तते, तत् कारणात् अत्र “उद्देश: २" इति निरर्थकम् मुद्रितं
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