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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति: [४], --------------------- उद्देशक: [-], ------------------- मूलं [२२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: अथ पञ्चविधजीवाख्या चतुर्था प्रतिपत्तिः। प्रत सूत्रांक * * [२२४] -- -- * दीप अनुक्रम [३४४] तदेवमुक्ता चतुर्विधा प्रतिपत्तिः, सम्प्रति क्रमप्राप्तां पञ्चविधप्रतिपत्तिमाह तत्थ जे ते एवमाहंसु-पंचविहा संसारसमावणगा जीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं०-एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया से किं तं एगिदिया?. २ विहा पण्णता, तंजहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य, एवं जाव पंचिंदिया दुविहा-पजसगा य अपजसगा य । एगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पणता?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमहत्तं उकोसेणं बावीसं वाससहस्साई, बेइंदिय० जहन्नेणं अंतोमु० उक्कोसेणं बारस संबच्छराणि, एवं तेइंदियस्स एगणपणं राइंदियाणं, चाउरिदियस्स छम्मासा, पंचेंदियस्स जह• अंतोमु० उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोबमाई, अपजत्तएगिदियस्स णं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमु० उकोसेणवि अंतो० एवं सब्वेसि, पजत्तेगिंदियाणं णं जाव पंचिन्दियाणं पुच्छा, जहन्नेणं अंतो० उक्को. बाबीसं चाससहस्साई अंतमुहत्तोणाई. एवं उक्कोसियाधि ठिती अंतोमुलुत्तोणा सब्वेसिं पज्जत्ताणं कायब्बा ॥ एगिदिए णं भंते! एगिदिएत्ति काल ओ केबचिरै होइ?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमु. उको वणस्ततिकालो। बेइंदियस्स भंते ! बेइंदियत्ति कालओ केवचिरं होइ?, जह• अंतो - -- -- 1 1 P अथ चतुर्थी "पञ्चविधा" प्रतिपत्ति: आरब्धा: संसारिजीवानाम् पञ्चविधत्वेन प्ररुपणं- एकेन्द्रियात् पञ्चेन्द्रिय-पर्यन्त जीवाधिकार: आरभ्यते ~818~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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