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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(वैमानिक)-२], - --------- मूलं [२१७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२१७] र गुब्भयमाणा विहरंति?, गोयमा! स्थि खुधापिवासं पच्चणुभवमागा विहरति जाव अणुत्तरोववातिया ॥ सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु देवा एगत्तं प्र विउवित्तए पुहत्तं पभू विउब्बित्तए?, हंता पभू, एगसं विउब्वेमाणा एगिदियख्वं वा जाव पंचिंदियरूवं वा पुहत्तं विउब्बेमाणा एगिदियरूवाणि वा जाव पंचिंदियरूवाणि वा, ताई संग्वेजाइपि असंखेजाइपि सरिसाई पिअसरिसाइंपि संपदाइंपि असंबद्धाइंपि रूवाई विउव्यंति विउवित्ता अप्पणा जहिरिछयाई कजाई करेंति जाव अचुओ, गेवेजणुत्तरोववातिया देवा किं एग पभू विउवित्तए पुहुत्तं पभू विउवित्तए?, गोयमा ! एगत्तंपि पुहुत्तंपि, नो चेव णं संपत्तीए निउब्बिसु वा विउब्बति वा विउव्यिस्संति वा ॥ सोहम्मीसाणदेवा केरिसयं सायासोक्खं पञ्चणुम्भवमाणा विहरंति ?, गोयमा! मणुपणा सहा जाव मणुषणा फासा जाव गेविजा, अणुत्तरोववाइया अणुत्तरा सहा जाव फासा।। सोहम्मीसाणेसु देवाणं केरिसगा इड्डी पण्णत्ता,गोयमा! महिड्डीया महजुइया जाव महाणुभागा इडीए पं० जाब अचुओ, गेवेजणुत्तरा य सब्वे महिहीया जाच सव्ये महाणुभागा अणिंदा जाव अहमिंदा णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो! ।। (सू० २१७) 'सोहम्मी'त्यादि प्रभसूर्य सुगम, भगवानाह-गौतम पम समुदूधाता: प्रज्ञतास्तद्यथा-वेदनासमुद्घातः कषायसमुदूपातो मरMणसमुद्घातो वैक्रियसमुद्घातस्तैजससमुद्घातः, एतेषां स्वरूपं प्रागेत्र द्विविवप्रतिपत्तायभिहित, उत्तरौ द्वौ समुद्घातो न भवतः, आ-| - दीप अनुक्रम [३३७] H जी०६८ ~808~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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