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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], --- ----------- उद्देशक: [(वैमानिक)-२], ------- ----------- मूलं [२१०-२१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२१०-२१५] माणा ॥ सोहम्मीसाणेसु णं देवा कओहिंतो उधवनंति ?, उबवातो नेयब्यो जहा बकतीए तिरियमणुएम पंचदिएम संमुच्छिमवजिएसु, उववाओ वकंतीगमेणं जाव अणुत्तरो०॥ सोहम्मीसाणेसु देवा एगसमएणं केवतिया उववजंति?, गोयमा! जहन्नेणं एको वा दो वा तिण्णि वा उकोसेणं संखेजा वा असंखेज्जा वा उववजंति, एवं जाव सहस्सारे, आणतादी गेवेजा अणुत्तरा य एको वा दो वा तिणि वा उक्कोसेणं संखेजा वा उववजंति ।। सोहम्मीसाणेसु णं भंते! देवा समए २ अवहीरमाणा २ केवतिएणं कालेणं अवहिया सिया?, गोयमा! तेणं असंखेजा समए २ अवहीरमाणा २ असंखेजाहिं उस्सप्पिणीहिं अवहीरंति नो चेव णं अवहिया सिया जाय सहस्सारो, आणतादिगेसु चउसुवि, गेवेजेसु अणुत्तरेसु प समए समए जाव केवतिकालेणं अवहिया सिया?, गोयमा! ते णं असंखेज़ा समए २ अबहीरमाणा पलिओवमस्स असंखेजतिभागमेतेणं अवहीरति, नो चेव णं अवहिया सिया ॥ सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं केमहालपा सरीरोगाहणा पण्णत्ता?, गोयमा! दुविहा सरीरा पण्णत्ता, तंजहा-भवधारणिजा य उत्तरवेउब्बिया य, तत्थ ण जे से भवधारणिज्जे से जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागो उकोसेणं सत्त रयणीओ, तत्थ णं जे से उत्तरवेउब्धिए से जहण्णेणं अंगुलस संखेजतिभागो कोसेणं जोयणसतसहस्सं, एवं एकेका ओसारेत्ताणं जाव अणुत्तराणं एका रपणी, दीप अनुक्रम [३२७-३३२] 3456AXERCAPACE 50-5 ~794~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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