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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [१], ------------------------- उद्देशक: [-1, ---------------------- मूलं [३४-३५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३४-३५]] प्राध्येषु कर्मभूमिजेषु, देवेषु व्यन्तरभवनवासिपु, तदन्येष्वसङ्ग्यायुष्काभावात् , अत एव गयागतिद्वारे चतुर्गतिका वषागतिकाः, 'प रीताः' प्रत्येकशरीरिणोऽसङ्खयेया: प्रज्ञमा: हे श्रमण! हे आयुष्मन् !, उपसंहारमाह-सेत्तं समुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजो[णिया' । उक्ता: संमूछिमजलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः, सम्प्रति संमूछिमस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकप्रतिपादनार्थमाह से किं तं थलयरसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया?.२ विहा पण्णता, तंजहा-चप्पयथलपरसंमुकिछमपंचेदियतिरिक्खजोणिया परिसप्पसंमु० ॥ से तिं थलयरचउप्पयसमुच्छिम०१, २ चउबिहा पण्णत्ता, तंजहा-एगखुरा दुखुरा गंडीपया सणफया जाव जे यावणे तहप्पकारा ते समासतो दुविहा पण्णता, तंजहा-पज्जत्सा य अपजत्ता य, तओ सरीगा ओगाहणा जहपणेणं अंगुलस्स असंखेजहभागं उक्कोसेणं गाउयपुहुत्तं ठिती जहणेणं अंतोमुहुरतं उकोसेणं चउरासीतिवाससहस्साई, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया दुआगतिया परित्ता असंखेजा पण्णत्ता, सेत्तं थलयरचउप्पदसंमु० से किं तं थलयरपरिसप्पसंमुच्छिमा?,२ दुविहा पण्णता, तंजहा-उरगपरिसप्पसमुच्छिमा भुयगपरिसप्पसंमुच्छिमा। से किं तं उरगपरिसप्पसंमुच्छिमा?,२ चउव्विहा पण्णत्ता, तंजहा-अही अयगरा आसालिया महोरगा । से किंतं अही?, अही दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-दब्बीकरा मउलिणो य । से किं तं दधीजी०स०७ करा?, २ अणेगविधा पपणत्ता, तंजहा-आसीविसा जाव से तं व्धीकरा । से किं तं मउ 5%95%25A4%E दीप अनुक्रम [४२-४३] -4-% E ~ 76~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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