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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [१], ------ ------------- उद्देशक: [(द्विप्-समुद्र)], --------- मूलं [१७९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: R प्रत सूत्रांक [१७९] तेहिं जोयणसाहस्सितेहिं तावखेत्तेहिं साहस्सियाहिं बाहिरियाहिं वेउब्वियाहिं परिसाहिं महयाहयनहगीतवादिततंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडप्पवादितरवेणं दिव्वाई भोगभोगाईमुंजमाणा महया उक्कडिसीहणायवोलकलकलसहेण विपुलाई भोगभोगाई भुंजमाणा अच्छयपब्वयरायं पदाहिणावत्तमंडलयारं अणुपरियडंति ॥ तेसि भंते! देवाणं इंदे चवति से कहमिदाणिं पकरेंति?, गोयमा! ताहे चत्तारि पंच सामाणिया तं ठाणं उवसंपजित्ताण विहरंति जाव तत्थ अन्ने इंदे उववण्णे भवति ॥ इंदट्ठाणे णं भंते ! केवतियं कालं विरहिते उववातेणं?, गोयमा! जहपणेणं एकं समयं उक्कोसेणं छम्मासा ।। बहिया णं भंते! मणुस्सखेत्तस्स जे चंदिमसूरियगहणक्वत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्डोववण्णगा कप्पोववरणगा विमाणोचवण्णगा चारोववष्णगा चारद्वितीया गतिरतिया गतिसमावण्णगा?, गोयमा! ते णं देवा णो उहोवव. पणगा नो कप्पोववपणगा विमाणोववन्नगा नो चारोववष्णगा चारद्वितीया नो गतिरतिया नो गतिसमावणगा पकिगसंठाणसंठितेहिं जोयणसतसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहि य बाहिराहिं वेचब्बियाहिं परिसाहिं महताहतणगीयवाइयरवेणं दिवाई भोगभोगाई मुंजमाणा सुहलेस्सा सीयलेस्सा मंदलेस्सा मंदायरलेस्सा चित्तंतरलेसागा कूडा इव ठाणहिता अण्णोपणसमोगाढाहिं लेसाहिं ते पदेसे सब्बतो समंता ओभासेंति उज्जोवेंति तवंति पभासेंति ॥ दीप OCKAGALOCALCIENCAKACANCA500 अनुक्रम [२८८] ~694~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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