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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [3], -----
----------------- उद्देशक: [(द्विप्-समुद्र)], ------------------- मूलं [१४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [3] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [१४१]
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विलंबितं णट्टविहिं उबदसेंति अप्पेगइया देवा इनविलंथितं णाम णविधि उवद मेंनि अप्पेगतिया देवा अंचियं णविधि उवदंति अप्पेगतिया देवा रिभितं णविधि उवदंसेंति अ० अंचितरिभितं णाम दिव्यं णविधि उवदंसेंति अप्पेगनिया देवा आरभडं णविधि उबदसति अप्पेगतिया देवा असोलं णविधि उपदमंनि अप्पेगनिया देवा आरभरभसोलं णाम दिवं णविधि उवदंति अप्पेगतिया देवा उप्पायणिवायपत्तं संकुचियपसारियं रियारियं भंतसंभंतं णाम दिब्ध णविधि उबईसेंति अप्पेगनिया देवा चम्विधं वातियं वादंति, तंजहाततं विततं पणं मुसिर, अप्पेगतिया देवा च दिन गेयं गातंति, जहा-उनि तयं पयसयं संदा रोइदावसाण, अप्पेगतिया देवा च उवि अभिणयं अभिणयंति, जहा-दिट्ठतिपं पारतिय सामन्तोवणिचालियं लोगमज्यावसापियं. अप्पेगनिया देवा पीणनि अपेगतिया देवा युकारेंति अप्पेगनिया देश तंडति अप्पेलानि अप्पेगनिया देवा पीगंति बुमारैतिनं वेति लासंति अपेगतिया देवा धुकारंति अप्पेगनिया देना अकोडंति अपेगतिया देवा वगंनि अप्पेगतिया देश तिवति दिति अप्पैगनिया देवा अफोरेंनि धग्गंति तिवति छिदंति अप्पेगतिया देवा हतहेसियं करेंति अप्पेगतिया देवा हविगु गुलाइयं करेंनि अप्पेगतिया देवा रहघणघणातियं करति अप्पेगतिया देवा हयहेमिय करनि इत्थिगुलगुलाइयं करति रघणघणाइयं करेंति
दीप अनुक्रम [१७९]]
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जी०स०४२
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विजयदेव-अधिकार:
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