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आगम
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“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [१], ------------------------- उद्देशक: -1, ---------------------- मूलं [१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [9] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
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श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः
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सूत्रांक [१५]
॥२२॥
दीप
ग्याएणं किं समोहया मरंति असमोहता मरंति ?, गोयमा! समोहतावि मरति असमोहतावि
१ प्रतिपत्ती मरंति । ते णं भंते ! जीथा अणंतरं उध्वहित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववजंति ?-किं नेरइएम लक्ष्णखरउववज्जति १०, पुच्छा, नो नेरइएसु उववज्जति तिरिक्खजोणिएम उवयजति मणुस्सेसु उब० नो | बादरदेवेसु उव०, तं चेव जाव असंखेजवासाउबजेहिं । ते णं भंते ! जीवा कतिगतिया कतिआगतिया थ्वीकायौ पण्णता ?, गोयमा! दुगतिया तिआगतिया परित्ता असंखेजा य समणाउसो!, से तं वायरपुढ
सू०१४विकाइया । सेत्तं पुढविकाइया ।-(सू०१५) से किं तमिलादि, अथ के ते श्लक्ष्णबादरपृथिवीकायिका:१, सूरिराह-लक्ष्णबादरपृथिवीकायिका: सप्तविधा: प्रहप्ताः, तदेव सप्तविधलं दर्शयन्ति, तद्यथा-कृष्णमृत्तिका इत्यादि भेदो भाणियब्यो जहा पण्णवणाए जाव तत्थ नियमा असंखिजा' इति, भेदो बा-1 दरपृथिवीकायिकानां द्विविधानामपि तथा भणितन्यो यथा प्रज्ञापनायां, स च तावद् यावत् "तस्थ नियमा असंखेजा" इति पदं, स चैवम्-किहमत्तिया नीलमत्तिया लोहियमत्तिया हालिहमत्तिया सुकिलमत्तिया पंडुमत्तिया पणगमत्तिया, सेत्तं सहवायरपुढवि-18 काइया । से किं तं खरवायरपुढविकाइया?, २ अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा-पुढवी य सकरा वालुया य उबले सिला य लोणूसे । तथा य तय सीसय रुप्प सुवण्णे य वइरे य ॥ १॥ हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासगंजण पवाले । अब्भपडलब्भवालय बा-1 |यरकाये मणिविहाणा ॥२॥ गोमेजए य रुयए अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगयमसारगले भुयमोयगइंदनीले य ॥ ३॥ चंदणगेरुयहसे पुलए सोगंधिए य बोद्धन्वे । चंदप्पभवेरुलिए जलकंते सूरकते य॥ ४॥ जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा |
अनुक्रम
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