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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [१], ----------------------- उद्देशक: [(द्विप्-समुद्र)], -------------------- मूलं [१२८-१२९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [१२८
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श्रीजीवाजीवाभि मलयगिरीयावृत्तिः ॥२०३॥
प्रतिपत्तो | मनुष्या० विजयद्वाराधिक उद्देशः१ सू०१२९
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-१२९]
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गताओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदडसमनिडालाओ चंदायिसोमदसणाओ उक्का इव उज्जोएमाणीओ विजघणमरीचिमूरदिप्पंततेयअहिययरसंनिकासाओ सिंगारागारचारुबेसाओ पासाइयाओ ४ तेयसा अतीव अतीव सोभेमाणीओ सोभेमाणीओ चिट्ठति ।। विजयस्स णं दारस्स उभयतो पासिं दुहतो णिसीहियाए दो दो जालकडगा पपणता, ते णं जालकडगा सब्बरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।। विजयस्स णं दारस्स उभओपासिं दुहओ णिसीधियाए दो दो घंटापरिवाडिओ पण्णत्ताओ, तासिक घंटाणं अयमेयारूचे घण्णावासे पपणते, संजहा-जंचूणतमतीओ घंटाओ बहरामनीओ लालाओ णाणामणिमया घंटापासगा तबणिजामतीओ संकलाओ रयतामतीओ रजूओ ॥ ताओ णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्सराओ हंसस्सराओ कोचस्सराओ णंदिस्सराओ णंदिघोसाओ सीहस्सराओ सीहघोसाओ मंजुस्स. राओ मंजुघोसाओ सुस्सराओ सुस्सरणिग्घोसाओ ते पदेसे ओरालेणं मणुपणेणं कण्णमणनिव्युइकरेण सरेण जाच चिट्ठति ॥ विजयस्स णं दारस्स उभओपासिं दुहतो णिसीधिताए दो दो वणमालापरिवाडीओ पण्णत्ताओ, ताओ णं वणमालाओ णाणादुमलताकिसलयपल्लवसमाउलाओ छप्पयपरिभुजमाणकमलसोभंतसस्सिरीयाओ पासाईयाओ ते पएसे उरालेणं जाव गंधेणं आपूरेमाणीओ जाव चिट्ठति (सू०१२९) ।।
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दीप अनुक्रम [१६६
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न।।।२०३॥
अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-द्विप्-समुद्राधिकारः एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- '१' अत्र १ इति निरर्थकम्
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