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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति: [१], ----------------------- उद्देशक: [(द्विप्-समुद्र)], -------------------- मूलं [१२८-१२९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[१२८
-१२९]
बिजये बेजयंते जयंते अपराजिए ॥(सू०१२८) कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजये नाम दारे पण्णसे?, गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स पुरस्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साई अपाधाए जंबहीवे दीव पुरच्छिमपेरंते लवणसमुद्दपुरच्छिमद्धस्स पञ्चस्थिमेणं सीताए महाणदीए उपि एत्थ णं जंबदीवस्स दीवस्त विजये णामं दारे पण्णसे अट्ट जोयणाई उहूं उच्चत्तेणं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं तावतियं चेव पवेसेणं सेए वरकणगथूभियागे ईहामियउसमतुरगनरमगरविहगवालगकिषगररुरुसरभचमरकुंजरवणलतपउमलयभत्तिचित्ते खंभुग्गतबहरवेदियापरिगताभिरामे विजाहरजमलजुयलजलजुत्ते इव अचीसहस्समालिणीए रूवगसहस्सकलिते भिसिमाणे भिम्भिसमाणे चक्खुल्लोयणलेसे सुहफासे सस्सिरीयस्वे वण्णो दारस्स (तस्सिमो होइ) तं०-बहरामया णिम्मा रिद्वामया पतिवाणा वेरुलियामया खंभा जायरूवोवचियपवरपंचवणमणिरयणकोहिमतले हंसगन्भपए एलुए गोमेजमते इंदक्खीले लोहितक्खमईओ दारचिडाओ जोतिरसामते उत्तरंगे वेरुलियामया कवाडा वरामया संधी लोहितवमईओ सूईओ गाणामणिमया सरगना बरामई अग्गलाओ अग्गलपासाया वारामई आवत्तणपेढिया अंकुत्तरपासते णिरंतरितघणकवाडे भित्तीसु चेव भित्तीगुलिया छप्पण्णा तिणि होति गोमाणसी तत्तिया णाणामणिरयणवालरूवगलीलहियसालिभंजिया बहरामए कृडे रययामए उ
दीप अनुक्रम [१६६-१६७]
SAKACANCRECARAMAKA5
अथ विजय-द्वाराधिकार: आरब्ध:
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