________________
आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], --------- ----------- उद्देशक: [(देव०)], ---- ------- मूलं [१२१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
-
4
-
प्रत
*
-
*
सूत्रांक [१२१]
-
दीप अनुक्रम [१५९]
सानि', 'जहा ठाणपदे जाव विहरंति' इति, यथा स्थानाख्ये प्रज्ञापनायां द्वितीये पदे तथा वक्तव्यं यावद्विहरन्तीति, तथैर्व-गोकायमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रथणामयस्स कंडस जोयणसहस्सबाहजस्स उबरि एगं जोयणसय ओगाहेत्ता हेट्ठावि एग जोयराणसयं बजेत्ता मज्ने अढसु जोयणसएसु, एत्थ णं वाणमन्तरार्ण तिरियमसंखेजा भोमेजा नगरावाससयसहस्सा भवतीतिगक्खायं,
ने भोमेजा नगरा बाहिं बहा अंतो चउरंसा अहे पुक्खरफरिणयासंठाणसंठिया उकिणतरविउलगंभीरखायपरिहा पागारहालयकवाहाडतोरणपडिदुबारदेसभागा अंतसयग्धिमुसलमुसुंद्विपरियरिया अयोज्झा सयाजया सयागुत्ता अडयालकोहरदया अडयालकववणमाला हाखेमा सिवा किंकरामरदंडोवर क्खिया लाउल्लोइयमहिया गोसीससरसरत्तचंदणदरदिनपंचंगुलितला उबचियचंदणकलसा चंदणधडसु
कयतोरणपदिदुवारदेसभागा आसत्तोसत्तविउलबट्टबग्घारियमल्लदामकलावा पंचवण्णसरससुरभिमुगापुएफपुंजोययारफलिया कालागुरुपवरकुन्दुरुकालुरुकधूवमघमघेतर्गधुद्धयाभिरामा सब्बरवणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निर्णकाच्छाया सप्पभा समिरीया समोया पासाईवा दरसणिज्जा अभिरूवा पडिरुवा, एत्थ णं पाणमंतराणं देवाणं भोमेजा नगरा पपण ता, तत्थ णं वहवे वाणमंतरा देवा परिवसंति, जहा-पिसाया भूया जक्खा रक्खसा किंनरा किंपुरिसा भुयगपतिणो महाकाया
गंधवगणा य निधणगंधब्बगीयरमणा अणपन्नियपणपन्निय इसिवाइय भूयबाइव कंदिय महाकं दिया य कुहंडपयंगदेवा चंचलचवलचि-1 पत्तकीलण पिया गहिरहसियगीयणचणरई वणमालामेलम उष्टकुंडलसक्छंदविउव्वियाभरणचारुभूसणधरा सम्बोउयसुरहि कुसुमरइयपलं
सोहंतकंतवियसंतचित्तवणमालरइयवच्छा कामकामा कामरूबदेहधारी नाणाबिबण्णरागवरवत्थचिल्ललगनियंसणा विषिहदेसनेवत्थगहियवेसा पमुइयकंवप्पकलहकेलिकोलाहलप्पिया हासबोलबहुला असिमोग्गरसत्तिहत्था भणेगमणिरयणविविह (निजुत्त) चित्तचिंधगया
~346~