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________________ आगम (१४) प्रत सूत्रांक [१२० ] दीप अनुक्रम [१५८] “जीवाजीवाभिगम” - उपांगसूत्र - ३ (मूलं + वृत्ति:) प्रतिपत्तिः [३], उद्देशक: [(देव०)], मूलं [१२०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१४], उपांग सूत्र [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि प्रणीत वृत्तिः ५ बिसि ६ । जछप्पन अभियवाण ८ पभंजणे ९ चैत्र महघोसे १० || ६ || चउसट्ठी सही खलु छब सहस्सा उ अमुरवजाणं सामाणिया उ एए चउरगुणा आयरक्खा ॥ ७॥” पर्षद्रकस्यताऽपि दाक्षिणात्यानां धरणवत्, उत्तराणां भूतानन्दवत् तथा चाह “परिसाओ सेसाणं भवणवणं दाहिगिहाणं जहा धरणस्स, उत्तरिहाणं जहां भूयानंदस्से "ति । तदेवं भवन (पति) वक्तव्य तोता, सम्प्रति बानमन्तरवव्यतामभिधित्सुराह--- कहि णं भंते! वाणमंतराणं देवाणं भवणा (भोमेजा नगरा) पण्णत्ता?, जहा ठाणपदे जाव विहरति ॥ कहि णं भंते! पिसावाणं देवाणं भवणा पण्णता?, जहा ठाणपदे जाव विहरति कालमहाकालाय तत्थ दुवे पिसायकुमाररायाणो परिवसंति जाब बिहरंति, कहि णं भंते! दाजिल्ला पिसाकुमाराणं जाव विहरंति काले य एत्थ पिसायकुमारिंदे पिसायकुमारराया परिवसति महहिए जाव विहरति ॥ कालस्व णं भंते! पिसायकुमारिंदस्स पिसायकुमाररण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ?, गोषमा ! निष्णि परिसाओ पण्णत्ताओ, तंजहा-ईसा तुडिया ददरहा, अभितरिया ईसा मजिशमिया तुडिया बाहिरिया दढरहा । कालस्स भंते! पिसायकुमारिंदस्स पिसायकुमाररण्णो अभितरपरिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्ण ताओ? जाव बाहिरियाए परिसाए कई देविसया पण्णत्ता?, गो० कालस्स णं पिसायकुमारिंदस्स पिसायकुमार रायस्स अतिरियपरिसाए अटु देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ममिपरि वाणव्यन्तर- देवानां भेद-प्रभेदाः एवं विविध विषयाधिकारः For P&False Cnly ~344~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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