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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [3], -------- ------------ उद्देशक: [(मनुष्य)], -- मूलं [११२-११३] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [११२ -११३] गाथा चउके सत्स जोयणसताई आयामविक्खंभेणं बावीसं तेरसोत्तरे जोयणसए परिक्वेवणं । छट्टचउके अट्टजोयणसताई आयामविक्रखंभेणं पणुवीस गुणतीसजोयणसए परिक्वेवणं । सत्तमचउके नवजोयणसताई आयामविक्खंभेणं दो जोयणसहस्साई अट्ठ पणयाले जोयणसए परिक्वेवेणं । जस्स य जो विक्वंभो जग्गहो तस्स तत्तिओ चेव । पढमाझ्याण परिरतो जाण सेसाण अहिओ उ॥१॥ सेसा जहा एगुरूयदीवस्स जाव सुद्धदंतदीवे देवलोकपरिग्गहा गं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! । कहिणं भंते ! उत्तरिल्लाणं एगुरूयमणुस्साणं एगुरुयदीये णामं दीये पपणते?, गोयमा! जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं सिहरिस्स वासधरपब्वयस्स उत्तरपुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुई तिषिण जोयणसताई ओगाहित्सा एवं जहा दाहिणिल्लाण तहा उत्तरिल्लाण माणितव्वं, णवरं सिहरिस्स बासहरपब्वयस्स विदिसासु, एवं जाव सुद्धदतदीवत्ति जाव सेसं अंतरदीवका ॥ (सू०११२)। से किं तं अकम्मभूमगमणुस्सा?, २ तीसविधा पण्णसा, जहा-पंचहिं हेमवएहिं, एवं जहा पण्णवणापदे जाव पंचहिं उत्तरकुरूहिं, सेसं अकम्मभूमगा । से किं तं कम्मभूमगा?, २ पण्णरसविधा पण्णता, तंजहा-पंचहिं भरहेहिं पंचहिं एरवएहिं पंचहिं महाविदेहहिं, ते समासतो दुविहा पणत्ता, तंजहा-आयरिया मिलेच्छा, एवं जहा पण्णवणापदे जाव सेत्तं आयरिया, सेत्तं गम्भवतिया, सेत्तं मणुस्सा।। (स०११३) दीप अनुक्रम [१४६ - -१५१] ~314~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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