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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(मनुष्य)], -------------------- मूलं [१११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [१११]
श्रीजीवाजीवाभिकहा मलयगिरीयावृत्तिः
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प्रतिपत्तो दा मनुष्या
घि का उद्देशः१
धू०१११
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॥१४७॥
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दीप अनुक्रम [१४५]
पणत्ता समणाउसो!, जहा से हारहारवट्टणगमउडकुंडलवासुत्तगहेमजालमणिजालकणगजालगमुत्तगउचिइयकडगाखुडियएकावलिकंठसुत्तमंगरिमउरत्यगेवेनसोणिसुत्तगचूलामणिकणगतिलगफुल्लसिद्भूत्थयकण्णवालिससिसूरउसभचक्कगतल अंगतुङियहत्थिमालगवलम्वदीणारमालिता चंदमरमालिता हरिसयकेयूरवलयपालंयअंगुलेजगकंचीनेहलाकलावपयरगपायजालघंटियविखिणिरयणोरुजालस्थिगियवरणेउरचलणमालिया कणगणिगरमालिया कंचणमणिरयणभत्तिचित्ता भूसणविधी बहुप्पगारा तहेव ते मणियंगावि दुमगणा अणेगयाहुविविहवीससापरिणताए भूसणविहीए उववेया कुसवि० जाव चिट्टति ८ । एगुरूया दीये तस्थ २ बहवे गेहागारा नाम मगणा पण्णत्ता समणाउसो, जहा से पागारद्वालगचरियदारगोपुरपासायाकासतलमंउवागसालबिसालगतिसालगचउरंसचउसालगन्भघरमोहणघरवलभिधरचित्तसालमालयभत्तिघरवतंसचतुरंसगंदियावत्तसंठियायलपंडुरतलमुंडमालहम्मियं अहव णं धवलहरअद्धमागह विभमसेलसलसंठियकृडागारद्वसुविहिकोहगअणेगघरसरणलेणआवणविडंगजालचंदणिज्यूहअपवरकदोवालिचंदसालियरूवविभत्तिकलिता भवणविही बहुविकप्पा तहेव ते गेहागारावि दुमगणा अणेगवहविविधवीससापरिणयाए सुहारहणे महोत्ताराए सुहनिश्वमणप्पवेसाए दहरसोपाणपंतिकलिताए परिकाए सुहविहाराए मणोऽणुकलाप भवणविहीए उवचेया कुसवि० जाव
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नामA COCOCCANCIES
॥१४७॥
अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-मनुष्योद्देशक: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- '१' अत्र १ इति निरर्थकम्
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