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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], --------- ----------- उद्देशक: [(मनुष्य)], ------- --------- मूलं [१११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [१११]
दीप अनुक्रम [१४५]
एसो! जहा से चंदप्पभमणिसिलागवरसीधुपवरवारुणिसुजातफलपत्तपुष्कचोयणिज्जा संसारबहुदबजुत्तसंभारकालसंधयासवा महुमेरगरिट्ठाभदुद्धजातीपसन्नमेल्लगसताउ खजूरमुद्दियासारकाविसायणमुपकरखोयरसवरसुरावण्णरसगंधफरिसजुत्तबलवीरियपरिणामा मजविहित्थबहुप्पगारा तदेवं ते मत्संगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए मजविहीए उववेदा फलेहिं पुण्णा वीसंदंति कुसविकुसविसुद्धरुवमूला जाब चिट्ठति १। एकोरुए दीबे तत्व २ यह वो भिंगंगया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो!, जहा से बारगघडकरगकलसककरि पायंकंचणिउदंकवाणिसुपविट्टरपारीचसकभिंगारकरोडिसरगथरगपत्तीवालणत्थगववलियअवपदगवारकविचित्राथट्टकमणिचट्टकसुत्तिचारुपिणयाकंचणमणिरयणभत्तिविचित्ता भायणविधीए बहुप्पगारा तहेव ते भिंगंगयावि दुमगणा अणेगबहुगविविहवीससाए परिणताए भाजणविधीए उववेया फलेहिं पुनाचिव विसति कुसविकुस जाब चिट्ठति २। एगोरुगदीवे णं दीये तत्थ २ बहवे तुडियंग। णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो!, जहा से आलिंगमुयंगपणवपडहददरगकरडिडिंडिमभभाहोरंभकपिणयारखरमुहिमुगुंदसंखियपरिलीवब्वगपरिवाइणिवंसावेणुवीणासुघोसविनिमहतिकच्छभिरगसगातलतालकंसतालसुसंपउत्ता आतोजविधीणिउणगंधव्यसमयकुसलेहिं फंदिया तिवाणसुद्धा तहेव ते तुडियंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविधवीससापरि
SOCCESSAGAR
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