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आगम
(१३)
“राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [८१-८२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति
धीराजपनी
मलय गिरी
आराधना पतिज्ञ
जन्म मू०८१-२
या दृचिः
प्रत
॥१४५॥
सूत्रांक
[८१-८२]
में अरहताण जाव संपत्ताण । नमोऽत्थु ण केसिस्स कुमारसमणस्स मम धम्मोवदेसगस्स धम्मायरिपस्स, वदामि गं भगवंतं तत्थ गयं इह गए, पास मे भगवं तत्थ गए इह गयंतिक बंदह ममंसह, पुरिपिणं मए केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए थूलपाणाहवाए पचवाए जाव परिग्गहे, तं इयाणिपि णं तसदेव भावतो अंतिए सतं पाणाइवायं पचक्खामि जाव परिग्गहं सर्व कोहं जाव मिछादसणसालं, अकरणिजं जोय पञ्चकवामि, सौ असणे चउब्विह पि आहारं जाव जीवाए पथक्खामि, जपि य मे सरीरं इ९ जाव फुसंतुत्ति एयपि य णं चरिमेहिं ऊसासनिस्सासेहिं वोसिरामि. तिक आलोइयपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सूरियामे विमाणे उववापसभाए जाव वण्णो । तए णं से सूरियामे देवे अहणोववन्नए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पजतिभावं गच्छति, सं०-आहारपजत्तीए सरीरपजत्तीए इंदिपपज्जतीए आगपज्जनीए भासमणपजनीए,तं एवं खलु भो! सरियाभेणं देवेणं सा दिला देविड़ी ३व्वा देवजुली दिवे देवाणुभाये लढे पत्ते अभिसमझागए ॥ (सू०८१)॥ मूरियाभस्स गं भंते ! देव. स्स केवतियं काल ठिती पण्णता, गोयमा ! चवारि पलिओवमाई ठिती पणस्ता,से ण सूरि वामे देवे ताओ लोगाओ आउक्वएणं भवक्खएणं ठिडक्वएणं अतर चहना कहिं गमिहिति कहिं उवबचिहिति, गोथमा ! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवति, तं०-अढाई दिसाई घिउ
दीप अनुक्रम [८१-८२]
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प्रदेशी राजस्य आगामि भवा: एवं मोक्ष-प्राप्ति:
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