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________________ आगम (१३) "राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ---------- मूलं [६७-७४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: वायुवज्जीवा श्रीरामपश्नी को मलयगिरीया वृत्तिः शैनम् - स्तिकुन्थुस प्रत सूत्रांक [६७-७४] ॥ ११९॥ | सू.७३-४ दीप अनुक्रम [६७-७४] स्सई एयंत जाव तं तं भावं परिणमंतं !, हंता पासामि, जाणासि णं तुम पएसी! एवं तणवणस्सहकार्य किं देवो चालेइ असुरो था चालणागो वा किन्नरो वा चालेड किंपुरिसो वा चालेह महोरगी या चालेइ गंधचो वा चालेइ ?, हंसा जाणामि, णा देवो चालेइ जाव णो गंधयो चालेइ बाउयाए चालेइ, पाससिणं तुम पएसी। एतस्स वाउकायस्स सरूविस्स सकामस्स सरागस्स समोहस्स सवेयस्स सलेसस्स ससरीरस्स रूवं ?,णो तिणद्वे०, जइ गं तुम पएसीराया! एयस्स वाउकायस्स सरूविस्स जाव ससरीरस्स रूवं न पाससि तं कह णं पएसी! तब करयलंसि वा आमलग जीवं उवदंसिस्सामि , एवं खलु पएसी! दसटाणाई छउमस्थे मणुस्से सबभावेणं न जाणइ न पासइ, तंजहा-धम्मत्थिकार्य १ अधम्मस्विकार्य २ आगासस्विकार्य ३ जीव असरोरवदं ४ परमाणपोगगल ५ सई ६ गंध ७ वायं ८ अयं जिणे भविस्सइ वा णो भविस्सइ ९ अयं सबदुक्खाणं अंतं करेस्सा वा नो वा १०, पताणि चेव उप्पन्ननाणदसणधर अरहा जिणे केवली सबभावेणं जाणइ पासइ, तं-धम्मस्टिकार्य जाव नो वा करिस्सइ, सहाहिम तुम परसी! जहा अनो जीवो से चेव ९॥ (सू०७३)॥ तएणं से पएसीराया केसि कुमारसमणं एवं वयासी-से नूर्ण भंते। हथिस्स कुंथुस्स य समे चेव जीवे?, हंता पएसी! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे, से गूणं भंते ! हस्थीउ कुथु अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराए चेव अप्पासवतराए चेव एवं आहारनीहारउस्सास RELIGunintentrational केसिकुमार श्रमणं साधं प्रदेशी राजस्य धर्म-चर्चा ~ 281~
SR No.004113
Book TitleAagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages304
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size66 MB
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