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आगम
(१३)
“राजप्रश्निय"- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [१४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सुत्रांक
[५४]
दीप अनुक्रम [५४]
जाव विहरइ, तेण अज्ज सावत्थीए नयरीए बहवे उग्गा जाव इन्भा इन्भपुत्ता अप्पेगतिया वंदणवत्तियाए जाव महया वंदावंदगाह णिगच्छइ,तए ण से चित्ते सारही कंचुइपुरिसस्स अतिए एयम सोचा निसम्म हतु जाय हियए कौटुंबियपुरिसे सदावेद सदावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंटे आसरहं जुत्तामेव उवट्टवेह जाव सच्छत्तं उवट्ठति, तएणं से चित्ते सारही हाए कयवलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते शुहप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिते अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे जेणेच चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छह उवागच्छिचा चाउग्घंटे आसरहं दुरुहइश्त्ता सकोरिंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडगरेण विंदपरिखित्ते सावत्थीनगरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ २त्ता जेणेव कोहए चेइए जेणेव केसीकुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ २त्ता केसिकुमारसमणस्स अदूरसामंते तुरए णिगिण्हह रहं ठवेइ य, ठवित्ता पच्चोकहति २ चा जेणेव केसीकुमारसमणे तेव उवागच्छद २त्ता केसिकुमारसमणं तिकखुत्तो आयाहिणं पयाहिण करेइ करिता वंदह नमसइ २त्ता णच्चासण्णे णातिदरे सुस्ससमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं पाजुवासइ । तए णं से केसीकुमारसमणे चित्तस्स सारहिस्स तीसे महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्म परिकहेइ,तं०-सबाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सबाओ मुसावायाओ बेरमणं सघाओ अदिष्णादाणाओ वेरमणं सचाओ बहिडादाणाओ वेरमणं।
Santaratinididi
| चित्र-सारथिः, तस्य धर्म-प्राप्ति:
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