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________________ आगम (१३) “राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः ) ---------- मूलं [४३-४४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: श्रीराजमश्नी मलयगिरीया दृत्तिः पुस्तक रत्न बाचन | मू०४३ जिनप्रतिमा | पूजादि मु०४४ प्रत सूत्रांक [४३-४४] ॥१७॥ सभा मुहम्मा तेणेव उवागच्छति २ तासभं सुहम्म पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ २त्ता जे. येय माणवए चेझ्यखंभे जेणेव वइरामए गोलवसमुग्गे तेणेव उवागच्छद उवागच्छइत्ता लोमहत्थर्ग परामुसहर बहरामए गोलवद्दसमुग्गए लोमहत्थेणं पम जइ २ वहरामए गोलबद्दसमुग्गए बिहाडेइ २ जिणसगहाओ लोमहत्थेणं पमज्जइरत्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ पक्खालित्ता अग्गेहिं वरेहिं गधेहि य मल्लेहि य अच्चेइ ध्रुव दलयइ २त्ता जिणसकहाआ वइरामएसु गोलबहसमुग्गएसु पतिनिक्खिबह माणवगं चेइयखंभं लोमहत्थएणं पमज्जइ दिहाए दगधाराए सरसेणं गोसीसचंदणेणं चचए दलयइ, पुष्कारहणं जाव धूवं दलयइ, जेणेव सीहासणे तं चेव, जेणेय देवसयणिज्जे तं चेव, जेणेव खुट्टागमहिंदज्झए तं चेव, जेगेव पहरणकोसे चोप्पालपतेणेव उवागच्छर चा लोमहत्थर्ग परामुसइ २ सा पहरणकोसं चोप्पालं लोमहत्थएणं पमज्जा२त्ता दिवाए दगधाराए सरसेणं गोसीसचंदणेणं चचा दलेइ पुष्फारुहणं आसत्तोसत्त जाव धूवं दलयइ, जेगेव सभाए सुहम्माए बहुमज्झदेसभाए जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे तेणेव उवागच्छद २ ता लोमहत्थगं परामुसह देवसयणिज्जं च मणिपेढिय च लोमहत्थएणं पमज्जइजाव धूवं दलयइत्ता जेणेव उववायसभाए दाहिणिल्ले दारे तहेव अभिसेयसभासरिसं जाव पुरथिमिल्ला गंदा पुक्खरिणी जेणेव हरए तेणेव उवागच्छह २त्ता तोरणे य तिसोवाणे य सालिभंजियाओं य वालरूवए य तहेव, जेणेच दीप अनुक्रम [४३-४४] १०७॥ P arasurary.om | शाश्वत जिन-प्रतिमाया: पूजनं ~217~
SR No.004113
Book TitleAagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages304
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size66 MB
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