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आगम
“राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
(१३)
--------- मूलं [३६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[३६]
दीप
उच्चत्तेणं अट्ठ जोयणाई उज्वेहणं दो जोयणाई खंधा अद्धजोयण विक्खभेगं छजोयणाई विडिमा बहुमादेसभाए अढ जोयणाई आयामविक्खंभेणं साइरेगाई अढ जोयणाई सवग्गेणं पण्णता, तेसिणं चेइयरुक्खाणं इमेयारूवे वण्णावासे पणत्ते, तेजहो-वयरामया मूला रययसुपरहिया सुविडिमा रि. हामयविउला कंदा वेरुलिया रुइला खंधा सुजायवरजायरूवपढमगा विसालसाला नाणामणिमयरयणविविहसाहप्पसाह कलियपनतवणिज्जपत्तबिंटा जंबणयरत्तमउयसुकमालपवालसोभिया वरकुरग्गसिहरा विचित्तमणिरयणसुरभिकुसुमफलभरेणनमियसाला अहिय मणनयणणिवुइकरा अमयरससमरसफला सच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सज्जोया पासाईया ४, तेसि ण चेइयरुक्खाणं उरि अट्टमंगलगा झया छत्ताइछत्ता, तेसि ण चेहयरुक्खाणं पुरतो पत्तेयं २ मणिपेढियाओ पग्णताओ, ताओ णं मणिपेडियाओ अट्ट जोयणाई आयामविक्वंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेण सबमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ, तासि णं मणिपेढियाणं उवरि पत्तेयं २ महिंदज्झया पण्णता, ते णं महिंदज्झया सहि जीयणाई उर्दू उच्चत्तेणं जोयण उवहेण जोयणं विक्वंभेण वइरामया वदलहसुसिलिट्रपरिघट्टमसुपतिहिया विसिट्टा अणेगवरपेचवण्णकुडभिसहस्सपरिमंडियाभिरामा वाउछुयविजयवेजपतीपडागा छत्ताइकछत्तकलिथा तुंगा गयणललमभिलंघमाणसिहरा पासादीया ४, अट्टमंगलगा झया छत्तातिछत्ता, तेसि णं
अनुक्रम [३६]
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