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________________ आगम (१२) “औपपातिक” - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ---- मूलं [४२] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१२], उपांग सूत्र - [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४२]] गाथा औषपा- हणंति ? कम्हा णं केवली समुग्घायं गच्छंति ?, गोयमा ! केवलीणं चत्तारि कम्म॑सा अपलिक्खीणा भवंति, तिकम् |तंजहा-वेवणिज आउयं णाम गुतं, सवयहुए से वेयणिले कम्मे भवह, सव्वत्थोवे से आउए कम्मे भवहार [विसमं समं करेइ पंधणेहि ठिईहि य, विसमसमकरणयाए बंधणेहिं ठिईहि य एवं खलु फेवली समोहणंति ॥१०८॥ का एवं खलु केवली समुग्घायं गच्छति । सब्वेवि णं भंते ! केवली समुग्घायं गच्छति', णो णडे समझे. 'अ-15 कित्ता समुग्घायं, अणंता केवली जिणा । जरामरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगइंगया ॥१॥कइसमए भंते ! आउजीकरणे पण्णते?, गोयमा! असंखेजसमइए अंतोमुहुत्तिए पपणते । केवलिसमुग्घाए णं भंते ! कइसमइए पण्णते?, गोयमा ! असमइए पण्णत्ते, तंजहा-पढमे समए दंडं करेद विइए समए कवाई करे। तईए समए मंथं करेइ चउत्थे समए लोयं पूरेइ पंचमे समए लोयं पडिसाहरद छठे समए मंथं पडिसाहर सत्तमे समर कवाडं पडिसाहरइ अहमे समए दंड पडिसाहरइ पडिसाहरिता तओ पच्छा सरीरत्धे भव।। सेणं भंते! तहा समुग्घायं गए किंमणजोगं जुजइ ? वयजोगं जुजइ काययोगं जुजइ, गोयमा! णो मण-14 जोगं जुजद णो वयजोगं जुजइ कायजोगं जुजइ, कायजोगं जुजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोगं जुजइ ? ओरालियमिस्ससरीरकायजोगं जुजइ ? वेउब्वियसरीरकायजोगं जुजइ ? वेउब्वियमिस्ससरीरकायजोगं| मा जुजइ ? आहारसरीरकायजोगं जुजह? आहारसरीरमिस्सकायजोगं जुजह, कम्मासरीरकायजोगं जुजा, गोयमा ! ओरालियसरीरकायजोगं जुजइ, ओरालियमिस्ससरीरकायजोगंपि जुजइ, णो वेउव्वियसरीरका दीप अनुक्रम [५२-५४] ॥१०८॥ ~ 219~
SR No.004112
Book TitleAagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages244
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size53 MB
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