________________
आगम
(१२)
प्रत सूत्रांक
[४०]
दीप
अनुक्रम
[५० ]
“औपपातिक” - उपांगसूत्र - १ ( मूलं + वृत्ति:)
मूलं [४०]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१२], उपांग सूत्र [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
औपपातिकम्
॥ ९७ ॥
णं अजीवा सेऽविय दिण्णे णो चेव णं अदिष्णे सेऽविय दंतहत्थपायचरुचमसपकखालणट्टयाए पिवित्तए वा णो चेव णं सिणाइसए, अम्मडस्स कप्पड़ मागहुए य आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, सेऽविय वहमाणे जाव दिने नो चेव णं अदिष्णे सेऽविय सिणाइत्तए णो चेव णं हृत्थपायचरुचमसपक्खालणट्टयाए पिबित्तए वा, | अम्मडस्स णो कप्पड़ अन्नउत्थिया वा अण्णउत्थियदेवयाणि वा अण्णउत्थियपरिग्गहियाणि वा चेहयाई वंदित्तए वा णमंसित्तए वा जाव पज्जुवासित्तए वा णण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंतचेहयाई वा । अम्मडे णं भंते ! परिव्वायए कालमासे कालं किया कहिं गच्छहिति ? कहिंडववज्जिहिति ?, गोयमा ! अम्मडे णं परिब्वायए उद्यावहिं सीलब्वयगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोब वासेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई सम गोवासयपरियायं पाणिहिति २त्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं सित्ता सहि भत्ताई अणसणाए - | दित्ता आलोइयपडिते समाहिपत्ते कालमासे कालं किया बंभलोए कप्पे देवत्ताए उबवज्जिहिति, तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं अम्मडस्सवि देवस्स दस सागरोवमाई ठिई । से णं भंते ! अम्मडे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिक्खएणं अनंतरं चयं चत्ता कहिं गच्छहिति कहिं उबवज्जिहिति ?, गोयमा। महाविदेहे वासे जाई कुलाई भवंति अढाई दित्ताई वित्ताई | विच्छिण्णविउदभवणसयणासणजाणवाहणाई बहुधणजायरूवरपयाई आओगपभोगसंपउत्तारं विच्छडिपपरभत्तपाणाई बहुदासीदास गोमहि सगवेल गप्पभूपाई बहुजणस्स अपरिपाई तहप्पगारेसु कुलेसु
Education Internationa
अंबड-परिव्राजकस्य कथा
For Parts Only
~ 197 ~
अम्मडा०
सू० ४०
॥ ९७ ॥