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________________ आगम (१२) “औपपातिक” - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ----------- मूलं [३९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१२], उपांग सूत्र - [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: बडा औपपातिकम् प्रत सूत्रांक [३९] HAKAKKAR विरतिफलं त्वेषां परलोकाराधकत्वमेवेति, न च ब्रह्मलोकगमनं परिव्राजकक्रियाफलमेषामेवोच्यते, अन्येषामपि मिथ्या-51 ४ दृशां कपिलप्रभृतीनां तस्योक्तत्वादिति १३ ॥ ३९॥ ..बहुजणे गं भंते ! अण्णमपणस्स एवमाइक्खइ एवं भासह एवं परूवेइ एवं खलु अंबडे परिव्वायए कंपिलपुरे णयरे घरसते आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उबेइ, से कहमेयं भंते ! एवं?, गोयमा!, जपणं से बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ-एवं खलु अम्मडे परिब्वायए कंपिल्लपुरे जाव घरसए वसहि ट्र उवेद, सचे णं एसमडे, अहंपिणं गोयमा! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि-एवं खल अम्मडे परिब्वायए|| जाव वसहिं उबेइ । से केणढे णं भंते ! एवं चुचइ-अम्मडे परिब्वायए जाव वसहिं उचेह, गोयमा!, अम्मडस्स णं परिब्वायगस्स पगइभद्दयाए जाव विणीयाए छटुंछठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उडे वाहाओ गिज्झिय २ सूराभिमुहस्स आतावणभूमीए आतावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थाहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं अन्नया कयाइ तदावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहाबूहामग्गणगवेसणं करेमाणस्स वीरि-15 यलद्धीए वेठब्वियलद्धीए ओहिणाणलद्धी समुप्पण्णा, तए णं से अम्मडे परिव्वायए ताए वीरियलडीए ॥९६॥ उब्वियलद्धीए ओहिणाणलडीए समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेर्ड कंपिल्लपुरे घरसए जाव धसहि उवेइ, से तेणट्टेणं गोयमा! एवं वुचई-अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहिं उवेइ । पह णं भंते? दीप अनुक्रम [४९] ***** अंबड-परिव्राजकस्य कथा ~1954
SR No.004112
Book TitleAagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages244
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size53 MB
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