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________________ आगम (१०) प्रत सूत्रांक [१२] दीप अनुक्रम [१६] श्रुतस्कन्ध: [१], मूलं [१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [१०] अंग सूत्र [१०] "प्रश्नव्याकरणदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः प्रश्नव्याकर० श्रीमभयदेव० वृत्तिः ॥ ५५ ॥ “प्रश्नव्याकरणदशा” - अंगसूत्र - १० ( मूलं + वृत्तिः) - अध्ययनं [३] Eturatur निचं उत्तत्सुण्णभयसण्णसंपत्ता वसंति उच्चगावासवसहिं जहिं आउयं निबंधंति पावकम्मकारी बंधवजणसयणमित्तपरिवज्जिया अणिट्ठा भवंति अणादेजदुत्रिणीया कुठाणासणकुसेज्जकुभोयणा असुइणो कुसंघयणकुप्पमाणकुसंठिया कुरुवा बहुकोहमाणमायालोमा बहुमोहा धम्मसन्नसम्मत्तपन्भट्ठा दारिद्दोबदवाभिभूया निच्चं परकम्मकारिणो जीवणत्थर हिया किविणा परपिंडतकका दुक्खलद्धाहारा अरसविरसतुच्छ कय कुच्छिपूरा परस्स पेच्छंता रिद्धिसक्कार भोयणविसेससमुदयविहिं निदंता अप्पर्क कर्यतं च परिवयंता इह य पुरेकडाई कम्माई पावगाईं विमणसो सोएण डज्झमाणा परिभूया होंति सत्तपरिवज्जिया य छोभासिष्पकलासमय सत्यपरिवज्जिया जहाजायपसुभूया अवियत्ता णिञ्चनीयकम्मोवजीविणो लोयकुच्छणिज्जा मोघमणोरहा निरासबहुला आसापास पडिबद्धपाणा अत्थोपायाणकामसोक्खे य लोयसारे होंति अफलवंतका य सुडुविय उज्जमंता तद्दिवसुज्जुत्तकम् मकयदुक्खसंतवियसित्थपिंड संचय पक्खीणदव्वसारा निचं अधुवधणघणको सपरिभोगविवज्जिया रहियकामभोगपरिभोगसव्वसोक्खा परसिरिभोगोवभोगनिस्साणमग्गणपरायणा रागा अकामिकाए विर्णेति दुक्खं णेव सुहं णेव निब्बुतिं ज्वलति अचंतविपुलदुक्खसयसंपलित्ता परस्स दव्येहिं जे अविरया, एसो सो अदिण्णादाणस्स फलवियागो इहलोइओ पारलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महभओ बहुरयप्पगाढो दारुणो ककसो असाओ वाससहस्सेहिं मुञ्चति, न य अवेयइत्ता अस्थि उ मोक्खत्ति, एवमाहं णायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो कहेसी य अदिण्णादाणस्स फल For Park Use Only ~113~ ३ अधर्म द्वारे चौरिकाफलं सू० १२ ।। ५५ ।। Contrary org
SR No.004110
Book TitleAagam 10 PRASHNA VYAKARANAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size76 MB
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