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आगम
(१०)
“प्रश्नव्याकरणदशा” - अंगसूत्र-१० (मूलं+वृत्तिः ) श्रुतस्कन्ध: [१], ------------------------ अध्ययनं [३] ----------------------- मूलं [१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१०], अंग सूत्र - [१०] "प्रश्नव्याकरणदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
M३ अधर्म
प्रत
प्रश्वव्याकर० श्रीअभयदेव. वृत्तिः
चौरिका
सू०१२
[१२]
॥५४॥
ज्जीवबंधणा य कीरति केइ परदव्वहरणलुद्धा कारग्गलनियलजुयलरुद्धा चारगावहतसारा सयणविप्पमुक्का मित्तजणनिरिक्खिया निरासा बहुजणधिकारसद्दलज्जायिता [अलज्जाविया] अलजा अणुबद्धखुहा पारखसीउण्हतण्हवेयणदुग्घट्टपट्टिया विवन्नमुहविच्छविया विहलमतिलदुब्बला किलंता कासंता वाहिया य आमाभिभूय गसा परूढनहकेसमंसुरोमा छगमुत्तमि णियगंमि खुत्ता तत्व मया अकामका बंधिऊण पादेसु कहिया खाइयाए छुढा तत्थ य बगसुणगसियालकोलमज्जारचंडसंदंसगतुंडपक्खिगणविविहमुहसयलविलुत्तगत्ता कयविहंगा केई किमिणा य कुहियदेहा अणिवयणेहिं सप्पमाणा सुट्ठ कयं जं मउत्ति पावो तुट्ठणं जणेण हम्ममाणा लज्जावणका य होंति सयणस्सविय दीहकालं मया संता, पुणो परलोगसमावन्ना नरए गच्छंति निरभिरामे अंगारपलित्तककपअचस्थसीतवेदणअस्साउदिन्नसयतदुक्खसयसमभिहुते ततोवि उब्वट्टिया समाणा पुणोवि पवजति तिरियजोणिं तहिंपि निरयोवर्म अणुहवंति वेयणं, ते अणंतकालेण जति नाम कहिं वि मणुयभावं लभंति णेगेहिं णिरयगतिगमणतिरियभवसयसहस्सपारयट्टेहिं तत्थविय भवंतऽणारिया नीचकुलसमुप्पण्णा आरियजणेवि लोगवज्झा तिरिक्खभूता य अकुसला कामभोगतिसिया जहिं निबंधति निरयवत्तणिभवप्पवंचकरणपणोलिं पुणोवि संसार(रा)वत्तणेममूले धम्मसुतिविवजिया अणज्जा कूरा मिच्छत्तसुतिपवना य होति एगंतदंडरुइणो वेटेंता कोसिकारकीडोव्व अप्पगं अट्टकम्मतंतुषणबंधणेणं एवं नरगतिरियनरअमरगमणपेरंतचक्कवालं जम्मजरामरणकरणगम्भीरदुक्खपखुभियपउरसलिलं संजोगविओगवीची
दीप अनुक्रम [१६]
9E44
॥५४॥
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