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________________ आगम (०७) प्रत सूत्रांक [१४-१६] दीप अनुक्रम [१६-१८] “उपासकदशा” अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः) अध्ययन [ १ ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०७], अंग सूत्र - [०७] उपासक दशाङ्गे Jan Eratur - ॥ १७ ॥ पडिलंइ २ ना भायणवत्थाई पमज्जर २ ना भायणाई उग्गाहेद २ ता जेणेव समण भगवं महावीरे तणेव उवागच्छद २ ना समण भगवं महावीरं वन्दनमंस २ ता एवं व्यासी- इच्छामिणं भन्ते ! तुमेहिं अम्भणुष्णाए छट्ठक्खमणॐ पारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुद्राणस्स भिक्सायन्यिाए अडिनए, अहासुर्ह देवाणुप्रिया ! मा पsिबन्धं करेह । तए णं गोमे समणेणं भगवश महावीरेण अन्भणुष्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियाओ दृइपलासाओं वेश्याओ पडिणिक्खनइ २ ता अतुरियमचवलमसम्भन्ते जुगन्तरपरिलोयणाएं दिट्ठीए पुरओ ईरियं सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छ २ वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ । तए णं से भगवं गोयमे वाणियगामे नयरे जहा ॐ पण्णत्तीए तहा जाव भिक्खायरियाए अडमाणे अहापजतं भत्तपाणं सम्मं पडिग्गाहेइ २ ता वाणियगामाओ ॐ पडिणिग्गच्छइ २ चा कोल्लायस्स सन्निवेसस्स अहूरसामन्तेणं वीईवयमाणे बहुजणसद्दं निसामेइ, बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४ एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तेवासी आणन्दे नामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिम जाव अणवकङ्कुमाणे विहरइ । तए णं तस्म गोयमस्स बहुजणस्स अन्तिए एयमहं सोचा निसम्म अयमेयारूवे अज्झत्थिए ४-तं गच्छामि णं आणन्दं समगोवासयं पासामि एवं सम्पेहे २ना जेणेव कोल्लाए सन्निवेसे जेणेव आणन्दे समणोवामए जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छ तव णं मे आणन्द नमणोवासए भगवं For Penal Use Only गौतमस्वामिनः वर्णनं एवं तस्य भिक्षाचर्यागमनं मूलं [१४- १६] "उपासकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः ~37~ आनन्दाध्ययन ॥ १७ ॥ andrary org
SR No.004107
Book TitleAagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages113
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size25 MB
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