________________
आगम
(०७)
“उपासकदशा” - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) अध्ययन [१],
-------- मूलं [१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०७], अंग सूत्र - [०७] "उपासकदशा” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
(१)
गिहिधम्म पडिवज्जइ . ना तमव धम्मियं जाणप्पवर दुरुह २ ना जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसिं पिडिगया ॥ मू०५॥
'लहुकरण' इत्यत्र यावत्करणात् 'लहुकरणजुत्तजोइयमित्यादियांनवर्णको व्याख्यास्यमानसप्तमाध्ययनादवसेयः ।। (सू०९)
भन्ते ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ २ ला एवं बयासी-पहू णं भन्ते ! आणन्दे समणोवासए देवाणुप्पियाण अन्तिए मुण्डे जाव पवइनए ?. नो तिणटे ममद्रु, गोयमा ! आणन्दे णं समणोरासए रहूई वासाई मभणीवारगपरियागं पाउणिहिइ २ ना जाव मोहम्म कप्पे अनणे विमाणे देवताए उववजिहिइ । तत्थ णं अथगडाणं देवाणं चत्तारि पलिओक्माई दिई पष्णनानाथ णं आणन्दस्सऽवि समणोवामगस्म चनारि पलि
ओवमाठिई पणना नए णं समणे भगवं! महावी अन्नया कार बहिया जाय विहरद ॥ मगर | 100तएणं से आणन्दे समोवासए जाए अभिगयजीवाजीचे जाव पडिलांभमाणे विहरद । तए णं मा सिवानन्दा भानिया समणोचामिया मारा जाय पडिलाभमाणी विहरइ । मू० ॥ तए णं तस्म आणदस्स हारवालास माराहि मीलवगुणंदमणपचक्याणपासहोवदामोहि अप्पाणं सांत्रमाणस्स चोइस संवच्छतहकलाई समल्स मंचच्छरस्म अन्तरा वट्टमाणस्म अनश कयाइ पुरानावरनकालसयसि बाजागारियं जागरमाणम गयारूद बल्झथिए चिन्तिा पत्थिामणोगए मप ममप्पजिन्या-एवं
दीप अनुक्रम [११]
FaPranaamvam ucom
~ 30~