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________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्तिः ) श्रुतस्क न्ध: [१] -----------अध्ययन [१], -------- --- मूलं [१४-१७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत ज्ञाताधर्म सूत्रांक कथाङ्गम्, शाश्उत्क्षित ज्ञाताध्य. श्रेणिकागमः सू.१४ [१४-१५] +[१४-R +१५-R] ॥२९॥ धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव वेभारगिरिपायमूलं आहिंडमाणीओ डोहलं विणिति, तं जहणं अहमवि जाव डोहलं विणिज्जामि, तते णं हं सामी! अयमेयारूवंसि अकालदोहलंसि अविणिजमाणंसि ओलुग्गा जाव अट्टज्झाणोवगया झियायामि, एएणं अहं कारणेणं सामी! ओलुग्गा जाव अज्झाणोधगया झियायामि, तते णं से सेणिए राया धारिणीए देवीए अंतिए एयमढं सोचा णिसम्म धारिणि देवि एवं वदासी-माणं तुम देवाणुप्पिए ! ओलुग्गा जाव झियाहि, अहं गंतहा करिस्सामि जहाणं तुन्भं अयमेयारुवस्स अकालदोहलस्स मणोरहसंपत्ती भविस्सइत्तिक? धारिणी देवी इटाहिं कताहिं पियाहि भणुन्नाहिं मणामाहि बग्गहि समासासेह २ जेणेव बाहिरिया उवहाणसाला तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छहत्तासीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने धारिणीए देवीए एवं अकालदोहलं पहहिं आएहि य उवाएहि य उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मियाहि य परिणामियाहि य चविहाहि बुद्धीहिं अणुचिंतेमाणे २ तस्स दोहलस्स आयं वा उवायं वा ठिई वा उप्पत्तिं वा अविंदमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियायति (सूत्रं १४) तदाणतरं अभए कुमारे पहाते कयबलिकम्मे जाव सबालंकारविभूसिए पायवंदते पहारेत्थ गमणाए, तते गं से अभयकुमारे जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छह उवागच्छइत्ता सेणियं रायं ओहयमणसंकप्पं जाव पासइ २त्ता अयमेयारूवे अन्मस्थिए चिंतिए मणोगते संकप्पे समुप्पजित्था-अन्नया य ममं सेणिए राया एजमाणं पासति पास दीप अनुक्रम [१९-२४] ॥२९॥ ~61~
SR No.004106
Book TitleAagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages512
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size109 MB
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