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________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१९], ----------------- मूलं [१४१-१४७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: णामं उजाणे, तस्थ णं पुंडरिगिणीए रायहाणीए महापउमे णाम राया होत्या, तस्स णं पउमावती 'णामं देवी होत्था, सस्स णं महापउमस्स रन्नो पुत्ता पउमावतीए देवीए अत्तथा दुवे कुमारा होत्था, तं०-पुंडरीए य कंडरीए य सुकुमालपाणिपाया०, पुंडरीयए जुवराया, तेणं कालेणं २ घेरागमर्ण महापउमे राया णिग्गए धर्म सोचा पोंडरीय रज्जे ठवेत्ता पचतिए, पोंडरीए राया जाए, कंडरीए जुवराया, महापउमे अणगारे चोइसपुषाई अहिजइ, तते णं थेरा बहिया जणवयविहारं विहरति, तते णं से महापउमे यहूणि वासाणि जाय सिद्धे (सूत्रं १४१) तते णं घेरा अन्नया कयाई पुणरवि पुंडरिगिणीए रापहाणीए णलिणवणे उजाणे समोसढा, पोंडरीए राया णिग्गए, कंडरीए महाजणसई सोचा जहा महब्बलो जाच पज्जुवासति, घेरा धर्म परिकहेंति, पुंडरीए समणोवासए जाए जाव पडिगते, तते णं कंडरीए उहाए उद्देति उहाए उद्वेत्ता जाव से जहेयं तुम्भे वदह ज णवरं पुंडरीयं रायं आपुच्छामि तए णं जाव पचयामि, अहासुहं देवाणुप्पिया, तए णं से कंडरीए जाव धेरे बंदद नमसइ० अंतियाओ पडिनिक्खमह तमेव चाउघंटं आसरहं दुरूहति जाव पचोरुहइ जेणेव पुण्डरीए राया तेणेव उवागच्छति करयल जाव पुंडरीयं एवं बयासी-एवं खलु देवा! मए थेराणं अंतिए जाव धम्मे निसंते से धम्मे अभिरुइए तए णं देवा ! जाव पबत्तए, तए णं से पुंडरीए कंडरीय एवं बयासी-मा णं तुम देवाणुप्पिया! इदाणि मुंडे जाव पच्चयाहि अहंणं तुम महया २रायाभिसेएणं अभिसिंचयामि, तए णं से कंडरीए पुंड ~ 488~
SR No.004106
Book TitleAagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages512
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size109 MB
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