________________
आगम
(०६)
“ज्ञाताधर्मकथा" - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [९], ----------------- मूलं [८२-८८] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक 1८२-८८]
ज्ञाताधर्म
कथासम्,
९माकन्दीज्ञाते जिनरक्षितचलनं सू.
॥१६५॥
८४
गाथा:
साओ पूरयंती वयणमिणं चेति सा सकलुसा ॥३॥ होल वसुल गोल णाह दइत पिय रमण कंत सामिय णिग्घिण णिस्थक । छिपण णिकिव अकयलय सिढिलभाव निल्लज्ज लुक्ख अकलुण जिणरक्खिय मज्झं हिययरक्खगा!॥४॥णह जुज्जसि एक्वियं अणाहं अबंधर्व तुजन चलणओबायकारियं उज्झिर्ड महणं । गुणसंकर ! अहं तुमे विहूणा ण समत्थावि जीविउ खणपि ॥५॥ इमस्स पु अणेगझसमगरविविधसावयसयाउलघरस्स । रयणागरस्स मज्झे अप्पाणं वहेमि तुझ पुरओ एहि णियत्ताहि जइसि कुविओ खमाहि एकावराह मे ॥ ६॥ तुज्झ य विगयघणविमलससिमंडलगारसस्सिरीयं सारयनवकमलकुमुदकुवलयविमलदलनिकरसरिसनिभानयणं वयणं पिवासागयाएसद्धा मे पेच्छिउँ जे अवलोएहिता इओ मर्म णाह जा ते पेच्छामि वयणकमलं ॥ ७॥ एवं सप्पणयसरलमहुरातिं पुणो २ कलुणाई वयणार्ति जपमाणी सा पावा मग्गओ समण्णेह पावहियया ॥८॥ तते णं से जिणरक्खिए चलमणे तेणेव भूसणरवेणं कपणसुहमणोहरेणं तेहि य सप्पणयसरलमहरभणिएहिं संजायविजणराए रयणदीवरस देवयाए तीसे सुंदरचणजहणवयणकरचरणनयणलावारूवजोषणसिरिं च दिचं सरभसउवगूहियाई जाति विव्योपविलसियाणि य विहसियसकडक्खदिहिनिस्ससियमलियउबललिपठिपगमणपणयखिजियपासादियाणि य सरमाणे रागमोहियमई अवसे कम्मवसगए अवयवति मग्गतो सविलियं, तते णं जिणरक्खियं समुप्पन्नकलुणभावं मच्चुगलस्थाहणोल्लियमई अवयक्वंतं तहेव जक्खे य सेलए
दीप अनुक्रम [१२३-१४०]
॥१६॥
~333~