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________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा" - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [१] ---------------- अध्ययनं [१], ----------------- मूलं [५५,५६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५५,५६] दीप अनुक्रम [६६-६८] जाव सामातियमातियाति एक्कारस अंगाई अहिजति २ पाहिं चउस्थ जाव विहरति,प्तए णं से सुए सेलयस्स अणगारस्स ताई पंथयपामोक्खाति पंच अणगारसयाई सीसत्ताए चियरति, तते णं से सुए अन्नया कयाई सेलगपुराओ नगराओ सुभूमिभागाओ उजाणाओ पडिनिक्खमति २त्ता पहिया जणवयविहारं विहरति, तते णं से सुए अणगारे अन्नया कयाई तेणं अणगारसहस्सेणं सद्धि संपरिचुर पुवाणुपुर्षि घरमाणे गामाणुगाम विहरमाणे जेणेच पोंडरीए पथए जाव सिद्धे (सूत्रं ५५) एवमीयोसमित्यादिगुणयोगेनेति । 'पंचाणुवइयं इह यावत्करणात् एवं दृश्य 'सत्चसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवञ्जिचए, अहामुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबधं काहि सि । तए णं से सेलए राया थापच्चापुत्तस्स अणगारस्स अंतिए पंचाणुबइयं जाव उवसंपञ्जा, तए णं से सेलए राया समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे' इह यावत्करणादिदं दृश्यं 'उबल-11 Sदपुण्णपाचे आसवसंवरनिअरकिरियाहिगरणवंधमोक्खकुसले' क्रिया-कायिक्यादिका अधिकरण-खगनिवेत्तेनादि, एतेन च ज्ञानितोक्ता, 'असहेज्जे' अविद्यमानसाहाय्यः कुतीर्थिकरितः सम्यक्सविचलनं प्रति न परसाहाय्यमपेक्षते इति भावः, अत एवाह 'देवासुरनागजक्खरक्खसकिन्नरकिंपुरुसगरुलगंधवमहोरगाइपहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अगतिकमणिले देवा-पैमानक-II ज्योतिष्काः शेषा भवनपतिव्यन्तरविशेषाः गरुडाः-सुवर्णकुमाराः एवं चैतवतो 'निम्गंधे पावयणे निस्संकिए' निःसंकया। निखिए-मुक्तदयोनान्तरपक्षपातो निश्चितिगिच्छे-फलं प्रति निःशः लद्धहे-अर्थश्रवणतः गहियट्टे-अोवधारणेन पुच्छिक 8 संशये सति अहिंगयटे-बोधात् , विणिच्छियडे-ऐदम्पर्योपलम्भात अत एव अद्विमिंजपेम्माणुरागरसेसि-अस्वीनि शुक्रपरिव्राजकस्य दिक्षायाः प्रसंग: ~220~
SR No.004106
Book TitleAagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages512
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size109 MB
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