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________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्तिः ) श्रुतस्कन्ध: [१] ---------------- अध्ययनं [१], ----------------- मूलं [३०,३१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३०,३१] थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाति एकारस अंगाति अहिज्जति २ बारस भिक्खुपडिमाओ गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं कारणं फासेत्ता जाव कित्ता मए अन्भणुन्नाए समाणे गोयमाइ धेरे खामेइ २तहारू. वेहिं जाव विउलं पवयं दुरूहति २ दन्भसंधारगं संथरति २ दन्भसंधारोवगए सयमेव पंच महबए उच्चारेइ वारस वासातिं सामण्णपरिगाय पाउणित्ता मासियाए सलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहि भत्ताति अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिकते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उद्धं चंदिमसूरगहगणणक्खसतारारूवाणं यहुई जोयणाई यहूई जोपणसयाई बहूई जोयणसहस्साई वहुई जोयणसयसहस्साई बहूइ जोयणकोडीओ बहूइ जोअणकोडाकोडीओ उहुं दूरं उप्पइसा सोहमीसाणसणंकुमारमाहिंदवंभलंतगमहासुफसहस्साराणयपाणयारणच्चुते तिपिण य अट्ठारसुत्सरे गेवेजविमाणावाससए वीइवइत्ता विजए महाविमाणे देवत्ताए उबवण्णे, तस्थ णं अत्धेगइयाणं देवाणं तेत्तीसं सागारोवमाई ठिई पण्णता, तत्थ णं मेहस्सवि देवस्स तेत्तीसं सागरोवमाति ठिती पं०, एस णं भंते । मेहे देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं टितिक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चर्ष चहत्ता कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति', गो ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुझिहिति मुचिहिति परिनिवाहिति सबदुक्खाणमंतं काहिति। एवं खलु जंबू समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाव संपत्तेणं अप्पोपालंभनिमित्तं पढमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते त्तिवेमि (सूत्रं ३१) पढमं अज्झयणं समत्तं । दीप अनुक्रम [४०,४१] मेघकुमारस्य तपोमय-संयम-जीवनं ~154~
SR No.004106
Book TitleAagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages512
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size109 MB
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