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________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्तिः ) श्रुतस्कन्ध: [१] ---------------- अध्ययनं [१], ----------------- मूलं [३०,३१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३०,३१] दीप अनुक्रम समाणे हट्ट जाव हियए उट्ठाइ उडेर २त्ता समणं ३ तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २त्ता चंदर नमंसह २त्सा सयमेव पंच महच्वयाई आरुभेइ २त्ता गोयमाति समणे निग्गंधे निग्गंधीओ य खामेति खामेत्ता य तहारूवेहि कडाई हिं धेरेहिं सद्धिं विपुलं पवयं सणियं २ दुरूहति २ सयमेव मेहघणसन्निगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहति २ उच्चारपासवणभूमि पडलेहति र दम्भसंधारगं संथरति २दन्भसंधारगं दुरूहति २ पुरत्याभिमुहे संपलियंकनिसने करयलपरिग्गहियं सिरसावतं मत्थए अंजलि कट्ट एवं पदासीनमोऽत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताण, णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स, वंदामि णं भगवंतं तस्थगयं इहगए पासउ मे भगवं तत्थगते इहगतंतिकटु वंदति नमसह २त्ता एवं वदासी-पुर्विपिय णं मए समणस्स ३ अंतिए सधे पाणाइवाए पच्चक्खाए मुसावाए अदिन्नादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे माणे माया लोभे पेजे दोसे कलहे अभक्खाणे पेसुन्ने परपरिवाए अरतिरति मायामोसे मिच्छादसणसल्ले पञ्चक्खाते, इयाणिंपिणं अहं तस्सेव अंतिए सर्च पाणातिवायं पञ्चक्खामि जाव मिच्छादसणसल्लं पथक्वामि, सर्व असणपाणखादिमसातिमं चउचिहंपि आहारं पचक्खामि जावजीवाए, जंपि य इमं सरीरं इदं कंतं पियं जाव विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतीतिकटु एयंपिय णं चरमेहिं ऊसासनिस्सासेहिं वोसिरामित्तिकटु संलेहणाझूसणासिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरति, तते णं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अणगा [४०,४१] मेघकुमारस्य तपोमय-संयम-जीवनं ~ 152~
SR No.004106
Book TitleAagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages512
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size109 MB
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