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आगम
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“समवाय” - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्तिः ) समवाय [प्रकिर्णका:], -
--------- मूलं [११२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४], अंग सूत्र - [४] “समवाय” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [११२]
दीप अनुक्रम [१९१]
णिसढस्स वासहरपवयस्स समे धरणितले एस णं नव जोयणसयाई अबाहाए अंतरे ५०, एवं नीलवंतकूडस्सवि, विमलवाहणे णं कुलमरे णं नव धणुसयाई उडे उच्चत्तेणं होत्या, इमीसे थे रयणप्पभाए बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ नवहिं जोयणसएहिं सब्बुवरिमे तारारूवे चारं परइ, निसदस्स थे वासहरपब्वयस्स उवरिल्लाओ सिहरतलाओ इमीसे थे रयणप्पभाए पुढवीए पढमस्स कंडस्स बहुमज्झदेसभाए एस णं नव जोयणसयाई अबाहाए अंतरे प०, एवं नीलवंतस्सवि ॥ ९०० सूत्रं ११२ ॥
'निसहकूडस्स णमित्यादि, इहाय भावः-निषधकूटं पञ्चशतोच्छ्रितं निषधश्च चतुःशतोच्छूित इति यथोक्तमन्तरं भवतीति ॥ ९००॥
सब्वेवि णं गेवेजविमाणे दस दस जोयणसयाई उड्ड उच्चत्तेणं ५०, सब्वेवि णं जमगपय्वया दस दस जोयणसयाई उड्डे उच्चतेणं प० दस दस गाउयसयाई उव्हेणं प० मूले दस दस जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं प०, एवं चित्तविचित्तकूडावि भाणियब्बा, सव्वेवि वट्टवेयपवया दस दस जोयणसयाई उहूं उच्चत्तेणं प० दस दस गाउयसयाई उब्बहेणं प० मूले दस दस जोयणसयाई विक्खंभेणं प०, सव्वस्थ समा पल्लगसंठाणसंठिया प०, सब्वेवि णं हरिहरिस्सहकूड़ा वक्खारकूडवजा दस दस जोयणसयाई उहुं उच्चत्तेणं प०, मूले दस जोयणसयाई विक्खंभेणं, एवं बलकूडावि नंदणकूडवजा, अरहावि अरिहनेमी दस वाससयाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे, पासस्स णं अरहओ दस सयाई जिणाणं होत्था, पासस्स णं अरहमो दस अन्तेवासीसयाई कालगयाई जाव सव्वदुक्खप्पहीणाई, पउमद्दहपुंडरीयदहा य दस दस जोयणसयाई आयामेणं प०,। १००० सूत्र ११३ ॥ अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं विमाणा एकारस जोयणसयाई उहूं उच्चत्तेणं प०, पासस्स णं अरहओ इक्कारस
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