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________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् तथा मात्स्ये त्रिपञ्चाशाध्याये पुराणानुक्रमणिकाख्ये उपभेदान् प्रवक्ष्यामि लोके ये सम्प्रतिष्ठिताः। पाझे पुराणे यत्रोक्तं नरसिंहोपवर्णनम् ॥१॥ तच्चाष्टादशसाहस्रं नारसिंहमिहोच्यते। नन्दाया यत्र माहात्म्यं कार्तिकेयेन वर्ण्यते॥२॥ नन्दी पुराणं तल्लोकैराख्यातमिति कीर्त्यते। यत्र साम्बं पुरस्कृत्य भविष्यति कथानकम्॥३॥ प्रोच्यते तत्पुनर्लोके साम्बमेतन्मुनिव्रताः। एवमादित्यसंज्ञा च तत्रैव परिगण्यते॥४॥ अष्टादशभ्यस्तु पृथक् पुराणं यत् प्रदृश्यते। विजानीध्वं द्विजश्रेष्ठास्तदेतेभ्यो विनिर्गतम्॥५॥ (५३/५९-६२) ॥इति॥ तथा मत्स्यपुराण के तिरेपनवें अध्याय में पुराणों की अनुक्रमणिका में ऋषियो! अब मैं उन उपपुराणों का वर्णन कर रहा हूँ, जो लोक में प्रचलित हैं। पद्मपुराण में जहाँ नृसिंहावतार के वृत्तान्त का वर्णन किया गया है॥१॥ उसे.नारसिंह (नरसिंह) पुराण कहते हैं उसमें अठारह हजार श्लोक हैं। जिसमें स्वामि कार्तिकेय ने नन्दा के माहात्म्य का वर्णन किया है॥२॥ उसे लोग नन्दीपुराण के नाम से पुकारते हैं। मुनिवरो! जहाँ भविष्य की चर्चा सहित साम्ब का प्रसङ्ग लेकर कथानक वर्णन किया गया है॥३॥ उसे. लोक में साम्बपुराण कहते हैं इस प्रकार सूर्य महिमा के प्रसङ्ग में होने से आदित्यपुराण भी कहा जाता है॥४॥ द्विजवरो! उपर्युक्त अठारह पुराणों से पृथक् जो पुराण बतलाये गये हैं, उन्हें इन्हीं से निकला हुआ समझना चाहिए॥५॥ (मत्स्यपुराण ५३/५९-६३) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004100
Book TitlePuran Nirmanadhikaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Oza, Chailsinh Rathod
PublisherJay Narayan Vyas Vishwavidyalay
Publication Year2013
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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