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________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् पार्थक्येनैवाभूवन्निति विज्ञायते। संज्ञाविशेषास्तु ब्राह्मपाद्मादयः न विभिद्यन्ते तेष्वपि संवादविशेषविभिन्नेषु नानानिबन्धेषु प्रत्येकस्मिन् ग्रन्थकर्तृस्वारस्यानुरोधेन ग्रन्थसंख्याभेदः प्रकरणविच्छेदविभेदश्च संसिद्धः यथैतस्मिन्नेव पाद्येतावदालोक्यताम्। लोमहर्षणप्रोक्तं पाद्यमादितोऽन्यसंवादपरम्परासिद्धार्थनिबद्धम्। तदुक्तम् तत्रैव लोमहर्षण उवाच। देवदेवो हरिर्यद्वै ब्रह्मणे प्रोक्तवान् पुरा। ब्रह्मा तन्नारदायाह नारदोऽस्मद्गुरोः पुरः॥१॥ व्यास: सर्वपुराणानि सेतिहासानि संहिताः।। अध्यापयामास मुहुर्मामतिप्रियमात्मनः ॥२॥ .. तत्तेऽहं संप्रवक्ष्यामि पुराणमतिदुर्लभम्। इति।। अत्र विष्णुब्रह्मसंवादे शुद्धं पाद्यम् १। ततो ब्रह्मनारदसंवादे विष्णुब्रह्मसंवादोऽपि विषयीभवतीति विभिन्नो निबन्धः पाद्यस्य २। ततो नारदव्याससंवादे पूर्वसंवादौ विषयीभवत तो भिन्न नहीं है उनमें भी संवाद विशेष के कारण विभिन्न नाना निबन्धों में प्रत्येक में ग्रन्थकर्ता के स्वारस्य के अनुरोध से ग्रन्थ संख्या का भेद और प्रकरण विच्छेद का भेद स्वभाव सिद्ध है जैसा कि पद्मपुराण में ही अवलोकन कीजिए। लोमहर्षण के द्वारा कथित पद्मपुराण आदि से ही संवादों की भिन्न-भिन्न परम्परा से ग्रथित है जैसा कि उसी में कहा लोमहर्षण ने कहा देवाधिदेव हरि ने सबसे पहले ब्रह्मा को कहा, ब्रह्मा ने नारद को कहा और नारद ने हमारे गुरु को कहा॥१॥ ___ व्यास ने अपने अतिप्रिय मुझे इतिहास सहित सारे पुराण और संहिताओं का बारबार अध्यापन किया। उस अत्यन्त दुर्लभ पुराण का मैं तुम्हारे समक्ष प्रवचन करूँगा॥२॥ ___यहाँ विष्णु ब्रह्मसंवाद में शुद्ध पद्मपुराण है (१) तत्पश्चात् ब्रह्म नारद संवाद में विष्णु और ब्रह्म का संवाद भी विषय बन जुड़ जाता है। इस प्रकार पद्मपुराण का निबन्धन (ग्रथन) कुछ भिन्न हो जाता है (२) तत्पश्चात् नारद और व्यास के संवाद में पूर्व के दो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004100
Book TitlePuran Nirmanadhikaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Oza, Chailsinh Rathod
PublisherJay Narayan Vyas Vishwavidyalay
Publication Year2013
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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