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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
अष्टादश पुराणानि पुराणज्ञाः प्रचक्षते। ब्राह्यं पानं वैष्णवं च शैवं भागवतं तथा॥६॥ तथान्यन्नारदीयं च मार्कण्डेयं च सप्तमम् । आग्नेयमष्टमं चैवद्भविष्यं नवमं स्मृतम् ॥७॥ दशमं ब्रह्मवैवर्त लैङ्गमेकादशं स्मृतम्। वाराहं द्वादशं चैव स्कान्दं चात्र त्रयोदशम्॥८॥ चतुर्दशं वामनं च कौम पञ्चदशं स्मृतम्। मात्स्यं च गारुडं चैव ब्रह्माण्डं च ततः परम्॥९॥ सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च। सर्वेष्वेतेषु कथ्यन्ते वंशानुचरितं च यत् ॥१०॥ यदेतत् तव मैत्रेय पुराणं कथ्यते मया। एतद्वैष्णवसंज्ञं वै पाद्मस्य समनन्तरम् ॥११॥
प्रथम पुराण ब्रह्म है, दूसरा पद्म, तीसरा वैष्णव, चौथा शैव, पांचवाँ भागवत, छठा नारदीय और सातवाँ मार्कण्डेय है॥६॥
इसी प्रकार आठवाँ आग्नेय, नवाँ भविष्यत्, दसवाँ ब्रह्मवैवर्त और ग्यारहवाँ पुराण लैङ्ग कहा जाता है॥७॥
तथा बारहवाँ वाराह, तेरहवाँ स्कन्द, चौदहवाँ वामन, पन्द्रहवाँ कौर्म तथा इसके पश्चात् १६ वाँ मात्स्य, १७ वाँ गारुड़ और १८ वाँ ब्रह्माण्ड पुराण है हे महामुने! ये ही अठारह महापुराण हैं॥८-९॥
इन सभी में सृष्टि, प्रलय, वंश, मन्वन्तर और भिन्न-भिन्न वंशों के अनुचरित्रों का वर्णन किया गया है॥१०॥
हे मैत्रेय ! जिस पुराण को मैं तुम्हें सुना रहा हूँ वह पद्मपुराण के अनन्तर कहा हुआ वैष्णव नामक महापुराण है॥११॥
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