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________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् मुत्पत्तिः प्राप्यते। तत्रापि तावद् तस्मादेवादिमाद्ब्रह्माण्डपुराणग्रन्थान्मन्त्रार्थोपयुक्तानि तत्तदाधिभौतिकाधिदैविकाध्यात्मिकोपाख्यानसहितानि पुराणजातानि सम्यगवधाय महर्षिभिस्ततद्ब्राह्मणग्रन्थेषु तत्र तत्र यथोपयोगं तानि तान्याख्यानान्याख्यायन्ते स्म। तदभिप्रायेणैव च सोमो वै राजाऽमुष्मिन् लोके आसीत्तं देवाश्च ऋषयश्चाभ्यध्यायन्-कथमयमस्मात् सोमोराजा गच्छेदिति, तेऽब्रुवन् छन्दांसि यूयं न इमं सोमं राजानमाहरतेति, तथेति, ते सुपर्णा भूत्वोदपतन् तेयत्सुपर्णा भूत्वोदपतन् तदेतत् सौपर्णमिति आख्यानविद आचक्षते। (ऐत. ब्रा. १३.१) इत्येवमैतरेयकब्राह्मणादौ सिद्धानामेवाख्यानानामेव वक्तारः प्रतिपाद्यन्ते। तत्र ब्राह्मणेषु यद्यपि महर्षिभिरेवाख्यातान्याख्यानानि, अथापि नैतानि ब्राह्मणग्रन्थकर्तृ-महर्षिकल्पीनि विज्ञायन्ते। मन्त्रस्मारितप्रयोगसमवेतार्थोपपादनोपयुक्त्या तदुपादानात्तेषां मन्त्ररचनोत्तरकाअवलम्बन से ही बाद में अठारह पुराणों की उत्पत्ति की जानकारी प्राप्त होती है। उनमें भी उसी आदिम (प्रथम) ब्रह्माण्ड पुराण ग्रन्थ से मन्त्रार्थ के लिए उपयुक्त तत् तत् आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक उपाख्यानों से युक्त पुराण समूह का सम्यक् अवधान कर महर्षियों के द्वारा तत् तत् ब्राह्मण ग्रन्थों में तत् तत् स्थलों में उपयोग के अनुसार आख्यान कहे गये थे। उसी अभिप्राय से सोम राजा धुलोक में थे। तब देवों और ऋषियों ने विचार किया कि यह सोम राजा हमारे पास कैसे आवे? उन्होंने छन्दों से कहा—'हे छन्दों, आप हमारे लिए इस सोम राजा को लावें।' उन्होंने कहा—'ठीक है । वे पक्षी होकर (धुलोक के प्रति) उड़े। वे जो पक्षी होकर उड़े इसलिए आख्यानवेत्ता इसे 'सौपर्णाख्यान' के नाम से पुकारते हैं। (१३.१ प्रथम खण्ड, ३५४, ऐतरेय ब्राह्मण) इस प्रकार ऐतरेय ब्राह्मण आदि में सिद्ध आख्यानों को ही वक्ताओं का प्रतिपादित किया जाता है। ब्राह्मण-ग्रन्थों में यद्यपि महर्षियों के द्वारा आख्यान कहे गये हैं तथापि ये ब्राह्मण ग्रन्थों के कर्ता महर्षियों के द्वारा कल्पित नहीं किए गए हैं ऐसा सुस्पष्ट ज्ञात होता है। मन्त्रों के द्वारा स्मारित प्रयोग से सम्बद्ध अर्थों के उपपादन की युक्ति से उनका उपादान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004100
Book TitlePuran Nirmanadhikaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Oza, Chailsinh Rathod
PublisherJay Narayan Vyas Vishwavidyalay
Publication Year2013
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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