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________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् भवतानुदितप्रायं यशो भगवतोऽमलम् । येनैवासौ न तुष्येत मन्ये तदर्शनं खिलम् ॥ १.५.८ . आपने प्रायः भगवान् के निर्मल यश का गान नहीं किया है, जिस से हरि तुष्ट न हों मैं उस दर्शन को व्यर्थ मानता हूँ। यह भागवत का बीज है। महाभारत में व्यास की प्रतिज्ञा हैवासुदेवस्य माहात्म्यं पाण्डवानां च सत्यताम्। आदि १.१०० .. भगवान वासदेवश्च कीर्त्यतेऽत्र सनातनः। स हि सत्यमृतं चैव पवित्रं पुण्यमेव च ॥२५६ शाश्वतं ब्रह्म परमं ध्रुवं ज्योति: सनातनम्। यस्य दिव्यानि कर्माणि कथयन्ति मनीषिणः॥२५.७.. . असच्च सदसच्चैव यस्माद् विश्वं प्रवर्तते। सन्ततिश्च प्रवृत्तिश्च जन्ममृत्युपुनर्भवाः ॥२५८ अध्यात्म श्रूयते यच्च पञ्चभूतगुणात्मकम्। अव्यक्तादि परं यच्च स एव परिगीयते॥२५९ यहाँ वासुदेव की महिमा वर्णित है, सनातन भगवान् वासुदेव का यहाँ कीर्तन है सत्य, ऋत, पवित्र, पुण्य, शाश्वत, ब्रह्म, परम, ध्रुव, सनातन ज्योति; वहीं है। मनीषी उसके दिव्य कर्मों की कथा कहते हैं, यह सत् असत् और सदसत् विश्व की प्रवृत्ति उसी से है, जो कुछ भी अध्यात्म विश्व है जो भी पञ्च भूतात्मक भौतिक विश्व है तथा जो कुछ भी अव्यक्त है, इन सभी रूपों में उसी का गान है। महाभारत में सर्वत्र यही सबकुछ पद-पद में है। वसुदेव का आत्मज वासुदेव, यह नाम दो बार लेकर व्यास स्पष्ट कर देते हैं कि वृष्णिवंशोद्भव वसुदेवनन्दन कृष्ण ही यहाँ अभीष्ट हैं। क्या महाभारत और व्यास की भागवत में यह अवमानना नहीं है ? यह और ऐसे प्रसङ्ग सोद्देश्य हैं। भक्ति को येनकेन प्रकारेण सर्वोच्च प्रमाणित करने का भाव ही उद्देश्य है जबकि भक्ति की वरेण्यता सर्वत्र है। . एक उदाहरण प्रमाद का है। भागवत में ९ वें स्कन्ध के २२ वें अध्याय में बताया गया है कि जरासन्ध के पुत्र सहदेव के पश्चात् २२ राजा सहस्र वर्ष शासन करेंगे (४६४९ पद्य)। इसके पश्चात पाँच प्रद्योत १३८ वर्ष, दशशिशनाग ३६० वर्ष शासन करेंगे. इनके पश्चात् १०० वर्षों का नन्दों का शासन होगा (१२.१.१-११ पद्य)। इसके अनन्तर परिक्षित् जन्म से नन्द के अभिषेक तक का समय इस पद्य से बताया गया है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004100
Book TitlePuran Nirmanadhikaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Oza, Chailsinh Rathod
PublisherJay Narayan Vyas Vishwavidyalay
Publication Year2013
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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